देहरादून । उत्तराखंड में पर्यटन को बढ़ावा देने और पलायन को रोकने के लिए यूं तो कई तरह का योजनाएं बनाई जा रही हैं, लेकिन मूर्त रूप से कुछ ठोस होता नजर नहीं आ रहा है । इस सब के बीच उत्तराखंड पर्यटन विभाग के निर्देश पर उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (यूसैक) , जियोग्राफिकल सर्वे ऑफ इंडिया , नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (निम्स) ने कुछ वैज्ञानिकों और जानकारों के साथ मिलकर देवभूमि के प्राचीन तीर्थ मार्गों की स्थिति और उनके बारे में जानकारी जुटाने के लिए सर्वेक्षण का काम शुरू कर दिया है । इस संयुक्त टीम का उद्देश्य उत्तराखंड के उन मार्गों को खोजना है , जो सालों पहले उत्तराखंड के तीर्थ स्थलों पर जाने के लिए स्थानीय लोगों के साथ अन्य श्रद्धालु इस्तेमाल में लाया करते थे, लेकिन अब प्राकृतिक आपदा या अन्य कारणों से वह बंद हो गए हैं।
30 मई को पर्यटन विभाग को देनी है रिपोर्ट
मिली जानकारी के अनुसार , इन अलग अलग संस्थानों की संयुक्त टीम ने गत 26 अप्रैल से मार्गों के पुन सर्वेक्षण का काम शुरू कर दिया है । संयुक्त टीम के सदस्य अपने काम के लिए बद्रीनाथ , केदारनाथ , गंगोत्री , यमुनोत्री समेत अन्य तीर्थस्थलों पर जाकर सर्वेक्षण किया जाएगा ।
पर्यटकों और श्रद्धालुओं का बढ़ेगा उत्साह
असल में इन अभियान का उद्देश्य उत्तराखंड में तीर्थ स्थलों पर आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों को तीर्थस्थलों पर जाने के पुराने रास्तों तक पहुंचाना है, जहां लोग पुराने रास्तों से अपनी मंजिल तक जाने में कुछ अलग ट्रैक पा सकेंगे । इतना ही नहीं उन पर्यटकों के लिए जो ट्रेकिंग के लिए कुछ नई जगहों की तलाश करते हैं उन्हे इन नए रास्तों के बारे में बताकर पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है ।
सरकार करेगी नए रास्तों को विकसित
बता दें कि यूसैक , निम्स के साथ यह संयुक्त टीम जिन प्राचीन तीर्थ मार्गों को खोजेंगी, राज्य सरकार उन मार्गों को विकसित करेगी । सरकार का मानना है कि इससे जहां उत्तराखंड में पर्यटन बढ़ेगा , वहीं स्थानीय लोगों को इससे रोजगार भी मिलेगा ।