देहरादून। गर्मी की छुट्टियों के बाद अगले महीने से स्कूल खुल जाएंगे। स्कूलों के खुलने से पहले बाजार में एनसीईआरटी किताबों की पर्याप्त उपलब्धता निश्चित कराने के लिए राज्य कैबिनेट ने 2 प्रस्तावों को मंजूरी दी है। इसके तहत 20 से 50 फीसदी कम कीमत पर सीधे एनसीईआरटी वेंडर और उत्तर प्रदेश की मौजूदा फर्म से किताबें लेने का फैसला लिया गया है। सरकार की ओर से किताबें खरीदने के लिए पात्र छात्र-छात्राओं के खाते में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के माध्यम से पैसा भेजा जा चुका है लेकिन बाजार में किताब उपलब्ध न होने की वजह से छात्र किताबें नहीं खरीद पा रहे हैं।
गौरतलब है कि छात्रों को एनसीईआरटी की किताबें उपलब्ध कराने के लिए शिक्षा विभाग ने प्रिंटिंग और कागज खरीदने के टेंडर जारी किए थे। टेंडर प्रक्रिया पूरी न हो पाने के कारण किताबें नहीं छप सकीं जिसके चलते अभी तक कक्षा एक से 12वीं तक की करीब 41 लाख 22 हजार किताबें कम हैं। अब राज्य कैबिनेट ने छात्रों और अभिभावकों को राहत देने के लिए बुधवार को शिक्षा विभाग के दो प्रस्तावों को मंजूरी दी।
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यहां बता दें कि कैबिनेट में लिए गए फैसले में उत्तर प्रदेश में सबसे कम दरों पर पुस्तकें उपलब्ध करा रहे निविदा दाताओं से करीब 50 फीसदी कम कीमत पर पुस्तकें लेने पर भी सहमति बनी है। बता दें कि उत्तराखंड में सरकारी विद्यालयों में कक्षा 1 से 8वीं तक के सभी छात्र-छात्राओं को शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत निशुल्क किताबें उपलब्ध कराई जाती है। वहीं, कक्षा 8 से 12वीं तक के एससी-एसटी और छात्राओं को किताबें खरीदने के लिए खाते में डीबीटी के जरिए पैसा भेजा जाता है। प्राईवेट स्कूलों के छात्र-छात्राओं और आठवीं से 12वीं तक के अन्य छात्र-छात्राओं को बाजार से किताब खरीदनी होती है। इन्हीं किताबों के प्रकाशन के लिए टेंडर प्रक्रिया लटकी हुई थी।
एनसीईआरटी किताबों पर कब क्या हुआ
23 अगस्त 2017 - एनसीईआरटी किताबें लागू करने का शासनादेश जारी
16 मार्च 2018- किताबें खरीदने के लिए पैसा डीबीटी किए जाने का निर्णय हुआ और प्रिंटिंग व कागज खरीदे का टेंडर निरस्त कर अल्पकालिक निविदा आमंत्रित करने का निर्णय
09 अप्रैल 2018- एकल निविदा प्राप्त होने पर कार्यवाही के निर्देश
20 अप्रैल 2018- दोबारा निविदा असफल होने पर फिर अल्पकालिका निविदा के निर्देश
21 अप्रैल 2018- महानिदेशक विद्यालयी शिक्षा की संस्तुति पर सुरक्षा धनराशि (परफोरमेंस सिक्योरिटी) को 5 से घटाकर एक फीसदी करने का फैसला हुआ।