पौड़ी गढ़वाल । उत्तराखंड में बढ़ते तामपान के साथ एक बार फिर से जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो गया है । पिछले दिनों जंगलों में लगी आग अभी कई हिस्सों में पूरी तरह बुझी भी नहीं थी कि एक बार फिर से राज्य के कई जिलों में छोटी बड़ी करीब 160 जगहों पर आग भड़कने की खबरें आ रही हैं । पिछले 2-3 महीनों के दौरान में उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने की छोटी-बड़ी करीब 1420 घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 1840 हेक्टेयर क्षेत्र में वन संपदा को भारी क्षति पहुंची है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) ने हाल में 1 जनवरी 2018 से 29 मई तक देश में लगी आग की घटनाओं का आंकड़ा सामने रखा है, जिसमें खुलासा हुआ है कि उत्तराखंड में इस दौरान आग लगने की 168 घटनाएं बड़ी थीं।
मिली सूचना के अनुसार , उत्तराखंड में इन दिनों जंगल की आग विकराल रूप धारण कर रही है । पौड़ी, अल्मोड़ा, नैनीताल और चंपावत जिलों में दो दर्जन से अधिक स्थानों पर आग भड़की हुई है । इसके चलते जहां बड़ी संख्या में वन संपदा का नुकसान हो रहा है , वहीं कई जगहों पर तो यह आग आबादी के करीब आ पहुंची है । रानीखेत में घिंघारीखाल से लगे भंगचौड़ा के जंगल की आग के सैन्य सीमा क्षेत्र की ओर बढ़ने पर सेना के जवानों ने मोर्चा संभाला। मशक्कत के बाद उन्होंने आग पर काबू पाने में सफलता पाई। जंगलों में आग से धुंध भी फैली है और चमोली में इसके चलते हेली सेवाओं पर असर पड़ा।
मंगलवार को स्थिति अधिक गंभीर हो गई। अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत, नैनीताल, पौड़ी, टिहरी, रुद्रप्रयाग, चमोली जिलों में तमाम स्थानों पर जंगल सुलग रहे थे। ऊधमसिंहनगर जिले के जंगलों का कुछ हिस्सा भी झुलसा है। चमोली जिले में जंगलों की आग से उठ रहे धुएं से हेलीसेवाएं भी प्रभावित हुई हुई।
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आग की लगातार बढ़ी घटनाओं से वन विभाग की पेशानी पर बल पड़े हैं। इसे देखते हुए वन मुख्यालय ने सभी वन प्रभागों को फायर वाचरों की संख्या बढ़ाने के निर्देश दिए हैं, ताकि आग पर नियंत्रण पाया जा सके।
इससे इतर, फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया (एफएसआई) ने हाल में 1 जनवरी 2018 से 29 मई तक देश में लगी आग की घटनाओं का आंकड़ा सामने रखा है, जिसके अनुसार , देश के जंगलों में आग लगने की 252,504 घटनाएं दर्ज की गई हैं । इससे प्रतिवर्ष 550 करोड़ रुपए का नुकसान देश को हो रहा है। इस दौरान एक खास बात यह है कि जंगल में लगने वाली आग को रोकने के लिए जारी किए गया फंड पूरा खर्च ही नहीं हो पाता है । मात्र 45 से 65 फीसदी राशि का उपयोग की आग बुझाने के लिए हो पाया है ।
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एफएसआई ने 2018 में पूरे देश के जंगलों में 2,77,759 स्थान चिन्हित किए थे, जहां अक्सर आग लगती रहती है । इनमें सबसे ज्यादा आग वाले स्थान मिजोरम (32659) में हैं । अगर 2003 से 2017 तक के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि जंगल में आग की घटनाओं नें 46% का इजाफा हुआ था, लेकिन 2015 से 2017 तक जंगल में आग की घटनाओं नें 125% (15937 से 35888) का इजाफा हुआ ।
जानकारों का कहना है कि जंगलों में आग लगने के यूं तो कई कारण हो सकते हैं , लेकिन इनमें से सबसे बड़ा कारण जलती सिगरेट फेंकना, इलेक्ट्रिक स्पार्क है । इसके अलावा आग पकड़ने वाली वस्तुएं, घास हटाने के लिए जंगल में रह रहे लोगों द्वारा लगाई गई आग बिजली गिरने से, गिरते पत्थरों की रगड़ से, सूखे बांस या पेड़ों की आपसी रगड़ से, ज्यादा तापमान के चलते भी जंगलों में आग लग जाती है ।