देहरादून। अपनी खुशबू और स्वाद के लिए पूरी दुनिया में मशहूर देहरादून की चाय को पुनर्जीवित करने की कोशिशें तेज कर दी गई है। वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) के दून स्थित भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आइआइपी) के परिसर में मौजूद चाय के 6 बागानों को उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड को लीज पर देने पर सहमति बन गई है। इसके लिए जल्द ही बोर्ड और सीएसआइआर के बीच जल्द ही समझौता किया जाएगा। इन बागानों के अलावा श्री गुरु राम राय दरबार साहिब के विकासनगर के करीब मौजूद चाय बागानों को भी लीज पर लेने के लिए बोर्ड विचार कर रहा है।
विदेशों में भी मांग
गौरतलब है कि उत्तराखंड में कुल 1100 हेक्टेयर में चाय के बागान हैं, जिनसे सालाना करीब 80 हजार किलो चाय का उत्पादन होता है। अब उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड यहां की चाय को दुनिया तक पहुंचाने और इसका दायरा और अधिक बढ़ाने में जुट गया है। इस कड़ी में पहले देहरादून को चुना गया है। यहां बता दें कि पहले दून के चायपत्ती की मांग न सिर्फ देश में थी बल्कि विदेशांे में भी इसके दीवाने काफी थे। यहां की चाय की महक ब्रिटेन तक पहुंचती थी और इसीलिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने असोम के बाद उत्तराखंड को चाय बागान के लिए चुना।
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इन इलाकों में थे चाय बागान
आपको बता दें कि 1863 में आई देश की पहली भूमि बंदोबस्त रिपोर्ट पर गौर करें तो तब देहरादून में 1700 एकड़ में चाय बागान थे और यहां आरकेडिया, एनफील्ड, हरबंसवाला, बंजारावाला, लखनवाला, कौलागढ़, गुडरिच, न्यू गुडरिच, होपटाउन, अंबाड़ी, निरंजनपुर, हरभजवाला, गढ़ी, धर्तावाला, अंबीवाला, नत्थनपुर, निरंजनपुर में चाय बागान थे। इनसे करीब तीन लाख पौंड चाय का उत्पादन होता था। आजादी के बाद धीरे-धीरे इन बागानों की संख्या घटती चली और आज गिने-चुने बागान ही रह गए हैं। उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड ने दून की चाय की खुशबू और स्वाद को वापस दिलाने की कोशिश शुरू कर दी है। इसी के तहत दून के चाय बागानों को चाय विकास बोर्ड ने लीज पर लेने का ऐलान किया है।