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देहरादून. उत्तराखंड , एक ऐसा राज्य जहां धार्मिकमान्यताओं और रीति रिवाजों की अलग छठा देखने को मिलती है। हर जगह का महत्व अलग, हरमंदिर की मान्यता अलग, धर्म की इसी खूबसूरती को अपने में संजोए हुई है देवभूमि। चमोलीके देवाल ब्लाक में स्थित लाटू देवता का मंदिर एक ऐसी ही मिसाल है। साल में केवलएक बार कुछ घंटों के लिए खुलने वाले इस मंदिर का अपना ही एक अलग इतिहास है। मंदिर की खास बात यह है कि यहांश्रृद्धालु तो दूर खुद पुजारी भी भगवान के दर्शन नहीं कर पाते हैं। पुजारी आंखों औमुंह पर पट्टियां बांधकर लाटू देवता की पूजा अर्चना करते हैं। मंदिर से कोई अंदर नदेखे इसके लिए मंदिर के मुख्य कपाट पर पर्दा लगाया जाता है।
मान्यता है कि देवी पार्वती के साथ जबभगवान शिव का विवाह हुआ तो पार्वती (नंदा देवी ) को विदा करने के लिए सभी भाई कैलाशकी ओर चले। इसमें चचेरे भाई लाटू भी शामिल थे। रास्ते लाटू को इतनी प्यास लगी किपानी के लिए इधर-उधर भटकने लगे। इस बीच उन्हें एक बुजुर्ग बुड़िया का घर दिखा औरपानी की तलाश में घर के अंदर पहुंच गए। बुजुर्ग ने लाटू देवता से कहा कि कोने मेंमटका है पानी पी लो। संयोग से वहां दो मटके रखे थे। लाटू देवता ने एक मटके कोउठाया और पूरा का पूरा मटका खाली कर दिया। प्यास के कारण लाटू समझ नहीं पाए किजिसे वह पानी समझकर पी गए वह पानी नहीं मदिरा था। कुछ देर में मदिरा ने असर दिखानाशुरु कर दिया और लाटू देवता नशे में उत्पात मचाने लगे। इसे देखकर देवी पार्वतीक्रोधित हो गई और लाटू को कैद में डाल दिया। पार्वती ने आदेश दिया कि इन्हें हमेशाकैद में ही रखा जाए। माना जाता है कि कैदखाने में लाटू देवता एक विशाल सांप के रुपमें विरामान रहते हैं।
वांण क्षेत्र में लाटू देवता के प्रतिलोगों में अटूट श्रद्धा है। दूर- दूर से लोग अपनी मनोकामना लेकर लाटू के मंदिर मेंआते हैं। कहते हैं यहां मांगी गई दुआ कभी खाली नहीं जाती।