नई दिल्ली, उत्तराखंड का पिछले पंद्रह साल का चुनावी इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि यहां की जनता ने कभी किसी दल पर अंधभरोसा कर विजयी नहीं बनाया। वर्ष 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में ही कांग्रेस को बहुमत मिला था, वह भी बहुमत से सिर्फ एक सीट अधिक। जबकि 2007 और 2012 में कांग्रेस और भाजपा को लगभग बराबर सीटें मिली थीं। बस जिसने निर्दलीयों या छोटे दलों को साध लिया, वही सत्ता में आ गया। इसी वजह से उत्तराखंड का समुचित विकास भी नहीं हो पाया, क्योंकि कोई सरकार स्थिर होकर काम नहीं कर पाई। राजनीतिक पंडित इस बार भी यही कह रहे थे। चुनाव के अंतिम चरण तक भी किसी को नहीं लग रहा था कि उत्तराखंड में लहर नहीं, आंधी चल रही है। इसलिए यह सवाल महत्वपूर्ण है कि भाजपा को तीन चैथाई बहुमत कैसे मिला और कैसे राज्य की जनता ने स्वभाव के विपरीत भाजपा को आंख मूंदकर वोट दिया और प्रदेश को विकास के एक युगांतरकारी मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया? वह कौन-सी रणनीति थी, जिसने प्रदेश भाजपा में नए प्राण फूंके?
इसका एकमात्र श्रेय भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को जाता है, जिन्होंने प्रदेश भाजपा को ऐसा नारा दिया, जिसने जनता को इतना बड़ा फैसला लेने को विवश कर दिया। यह नारा था, श्अटल जी ने राज्य दिया, मोदी जी संवारेंगे।श् इससे पहले भाजपा नेताओं को समझ में नहीं आ रहा था कि किस तर्क के सहारे जनता के पास जाएं। लेकिन इस नारे के बाद भाजपा के प्रत्येक कार्यकर्ता ने पूरे प्रदेश में इस नारे को फैलाया। अमित शाह जानते थे कि उत्तराखंड की जनता राजनीतिक दृष्टि से जागरूक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले ढाई साल में दिन-रात काम कर जिस तरह देश की जनता के बीच भरोसा कायम किया है, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का भाल ऊंचा किया है, उससे यह साबित होता है कि उनसे बड़ा कोई प्रतीक (आइकन) इस समय देश में नहीं है।
उत्तराखंड की जनता ने भी इस नारे को हाथों-हाथ लिया। पिछले डेढ़ दशक से विकास की बाट जोह रहे प्रदेश की जनता को इससे बड़ा आश्वासन और क्या हो सकता था! स्थानीय नेताओं पर जनता को खास भरोसा नहीं रहा था। वह हर किसी को आजमा चुकी थी, इसलिए जब प्रधानमंत्री की सीधी छत्रछाया का आश्वासन मिला, तो उसने राहत की सांस ली।
चुनाव से ठीक पहले प्रधानमंत्री ने उत्तराखंड में चार रैलियां कीं, जिनमें अभूतपूर्व भीड़ उमड़ी थी। क्या हरिद्वार, क्या श्रीनगर, क्या रुद्रपुर और क्या पिथौरागढ़, उत्तराखंड के इतिहास में ऐसी रैलियां पहले कभी नहीं हुईं। इस भीड़ को देखकर कोई भी सहज ही अनुमान लगा सकता था कि उत्तराखंड में मोदी लहर किस कदर आंधी बनने को कुलांचे भर रही है। श्रीनगर की रैली में जब नरेंद्र मोदी ने कहा कि ‘उत्तराखंड की हिफाजत की जिम्मेदारी मेरी है’, तो उस दिन कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठुक गई थी। इन चारों रैलियों में मोदी ने स्थानीय मुहावरों के साथ उत्तराखंड की जनता से गहरा तादात्म्य कायम कर लिया। पिथौरागढ़ में तो इंदिरा गांधी के बाद किसी नेता ने जनता को संबोधित तक नहीं किया था। इसीलिए उत्तराखंड की महान जनता ने पूरे प्रदेश में जाति, धर्म और क्षेत्र से ऊपर उठकर नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट दिया और कांग्रेस का पूरी तरह से सफाया हो गया। वास्तव में सामजिक अनुसंधानकर्ता इस बात का अध्ययन करेंगे कि इस तरह नारे हमारे सामूहिक मनोविज्ञान को प्रभावित करते हैं।
साभार- अनिल बलूनी