पौड़ी गढ़वाल । पितृ पक्ष के खत्म होने के साथ ही शुक्रवार से मलमास का महीना शुरू हो गया है । हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर तीन साल में एक बार अतिरिक्त महीना जुड़ जाता है, जिसे अधिकमास, मलमास या पुरुषोत्तम कहा जाता है । असल में इस सबके पीछे का तर्क यह है कि सूर्य वर्ष 365 दिन और 6 घंटे का होता है , जबकि चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है । दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है। ऐसे में प्रतिवर्ष घटने वाले इन 11 दिनों को जोड़ा जाए , तो प्रत्येक तीन साल के बाद जोड़ा जाए तो यह एक माह के बराबर हो जाता है । इसी अंतर को घटाने के लिए प्रति तीन वर्ष के बाद एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अधिकमास या मलमास कहते हैं । इस अवधि में जहां शुभ कार्यों का करना वर्जित होता है , वहीं कई तरह के कर्मकांड़ की भी मनाही होती है ।
पौराणिक कथा के अनुसार, हर मास के लिए एक देवता निर्धारित हैं। जब सूर्य और चंद्रमा के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए मलमास प्रकट हुआ तो कोई भी देवता उसका अधिपति देव बनना स्वीकार नहीं किया। तब ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से निवेदन किया। उनके निवेदन पर भगवान विष्णु मलमास के अधिपति देव बनें। उनका एक नाम पुरुषोत्तम है, उस आधार पर ही मलमास का नाम पुरुषोत्तम मास पड़ा।
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विदित हो कि आज यानि शुक्रवार 18 सितंबर से शुरू होने वाले यह मलमाल - अधिक मास या पुरुषोत्म मास आगामी 16 अक्टूबर तक रहेंगे । इन दिनों को अशुभ माना जाता है।
बता दें कि इस समायवधि में विवाह कार्यों के साथ भी जनेऊ , नामकरण संस्कार तक वर्जित होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस समायावधि में विवाह करने वाले जोड़ों को पारिवारिक सुख की प्राप्ति नहीं होती है । उनके घर में हमेशा कलेश बना रहेगा और दंपति के बीच भी संबंध अच्छे नहीं रहते हैं।
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इसी क्रम में मान्यता ये भी है कि इस मास के दौरान कुछ अन्य मंगल कार्यों से भी बचना जाहिए । मसलन कर्णवेध, और मुंडन , गृह प्रवेश भी वर्जित माने जाते हैं, क्योंकि इस अवधि में किए गए कार्यों से रिश्तों के खराब होने की सम्भावना ज्यादा होती है । इतना ही नहीं व्यापारी वर्ग के लोगों को भी सलाह दी जाती है कि इस समयावधि में किसी भी नए व्यवसाय की शुरुआत न करें। मलमास में नया व्यवसाय आरम्भ करना आर्थिक मुश्किलों को जन्म देता है । इतना ही नहीं इस समयावधि में न तो किसी नई नौकरी को पकड़े या न ही किसी भी नए काम की शुरुआत करें ।
इस दौरान नए मकान का निर्माण और संपत्ति का क्रय करना वर्जित होता है । इस अवधि में किए गए काम शुभ कार्यों में बाधा डालते हैं । घर में सुख-शांति का बना रहना भी मुश्किल होता है । इतना ही नहीं अधिकमास में भौतिक जीवन से संबंधित कार्य करने की मनाही है । हालांकि जो कार्य पूर्व निश्चित हैं, वे पूरे किए जा सकते हैं ।
मलमास में भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है क्योंकि श्रीहरि विष्णु ही इस मास के अधिपति देव हैं। मलमास को पूजा पाठ, स्नान, दान आदि के लिए उत्तम माना गया है। इसमें दान का पुण्य कई गुणा प्राप्त होता है।