नई दिल्ली । एक बार फिर से समलैंगिग विवाह का मुद्दा कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध का विषय बन गया है । असल में केंद्र की मोदी सरकार ने समलैंगिंग विवाह का विरोध करते हुए इस मामले में कोर्ट के दखल को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है । इस मुद्दे से जुड़े एक मामले में केंद्र सरकार ने कोर्ट को दिए अपने एक जवाब में कहा कि 'अदालतें समलैंगिक विवाह के अधिकार को मान्यता देकर कानून की एक पूरी शाखा को फिर से नहीं लिख सकती हैं । सरकार का मानना है कि ज्यूडिशियल अवार्ड की मदद से समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती । यह संसद के क्षेत्र में अधिकार क्षेत्र में आता है न कि सुप्रीम कोर्ट के।
अर्बन एलीट आईडियाज को दर्शाती हैं
केंद्र सरकार ने इस मामले में कोर्ट की दखल में आपत्ति दर्ज करवाते हुए कहा है कि कोर्ट के लिए याचिकाएं "सोशल एक्सेप्टेंस के उद्देश्य से अर्बन एलीट आईडियाज (Urban Elite Ideas) को दर्शाती हैं । केंद्र सरकार ने अपना रुख साफ करते हुए कहा कि समलैंगिंगों के बीच शादी मैरिज को मान्यता न देने का विकल्प विधायी नीति का एक पहलू है । यह स्पष्ट विधायी नीति के मद्देनज़र अदालत में न्याय करने के लिए सही विवाद नहीं है । केंद्र ने कहा कि शादी केवल एक पुरुष और एक महिला के बीच हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की अर्जी
विदित हो कि केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह मामले में रविवार (16 अप्रैल) को सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर कोर्ट से याचिकाओं पर फैसला लिए जाने पर अपनी बात रखी है । केंद्र ने तर्क दिया है कि संसद की जवाबदेही नागरिकों के प्रति है और उसे लोकप्रिय इच्छा के अनुसार काम करना चाहिए, खासकर जब पर्सनल लॉ की बात आती है ।
कब होगी अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया है । इसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, पीएस नरसिम्हा और हेमा कोहली शामिल हैं । मामले पर अब अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होगी ।