नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि आज के समय में सार्वजनिक पद पर बैठे लोगों के कुछ भी बोलने (freedom of speech) पर संविधान के अनुच्छेद 19(2) के तहत निर्धारित प्रतिबंधों के अलावा कोई भी अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता । कोर्ट ने कहा कि किसी जनप्रतिनिधि के भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत नागरिक पर कोई अतिरिक्त प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है । कोर्ट ने कहा कि किसी मंत्री द्वारा दिए गए बयान के लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है । अपने बयान के लिए वह खुद जिम्मेदार होंगे ।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagarathna) ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि हमारे जैसे देश के लिए जो एक संसदीय लोकतंत्र है, एक स्वस्थ लोकतंत्र सुनिश्चित करने के लिए बोलने की स्वतंत्रता एक आवश्यक अधिकार है । साथ ही देश में नागरिकों को अधिकारों और कर्तव्यों के बारे में जानकारी दी जाती है । इस मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ का कहना है कि किसी भी बयान के लिए मंत्री खुद जिम्मेदार हैं ।
वह बोले - - संवैधानिक पदो पर बैठे लोगों को खुद आत्म निरीक्षण की जरूरत है कि वो जनता को क्या संदेश दे रहे हैं । यह पार्टी पर निर्भर करता है कि वह अपने मंत्रियों द्वारा दिए गए भाषणों को नियंत्रित करें जो एक आचार संहिता बनाकर किया जा सकता है । कोई भी नागरिक जो इस तरह के दिए गए भाषणों या सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों द्वारा अभद्र भाषा के उपयोग से आहत महसूस करता है कोर्ट जा सकता है ।
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न, न्यायमूर्ति रामासुब्रमण्यम से इस बात पर सहमत हैं कि अनुच्छेद 19(2) के तहत आधारों के अलावा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अधिक प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता । जबकि जस्टिस नागरत्न ने आगे कहा कि अनुच्छेद 19(1)(ए) और 21 के तहत मौलिक अधिकार संवैधानिक अदालतों में क्षैतिज रूप से लागू नहीं हो सकते हैं , लेकिन आम कानूनी उपाय उपलब्ध हैं ।