नई दिल्ली । महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के घर के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करने का ऐलान करने पर अमरावती की सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज करते हुए मुंबई पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया । इस सबके बीच राजद्रोह कानून (Sediton Law) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाायर हुई , जिसपर सुनवाई करते हुए आज बुधवार को शीर्ष अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है । कोर्ट ने देशद्रोह कानून पर रोक लगाते हुए कहा कि देशद्रोह कानून के तहत तब तक कोई नई प्राथमिकी (FIR) दर्ज न हो जब तक कि केंद्र इस ब्रिटिश-युग के कानून के प्रावधानों की फिर से जांच नहीं करता। इन प्रावधानों को ही कोर्ट में चुनौती दी गई है।
केंद्र और राज्य सरकार इससे परहेज करें
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस एनवी रमना ने अपने फैसले में कहा - केंद्र और राज्य सरकारें राजद्रोह कानून (Sediton Law) के तहत एफआईआर दर्ज करने से परहेज करें । कोर्ट ने कहा कि जब तक सरकारें इस कानून की समीक्षा नहीं कर लेती है, तब तक इस कानून का इस्तेमाल करना ठीक नहीं होगा । कोर्ट ने कहा कि राजद्रोह कानून फिलहाल निष्प्रभावी रहेगा । हालांकि जो लोग पहले से इसके तहत जेल में बंद हैं, वो राहत के लिए कोर्ट का रुख कर सकेंगे ।
सरकार की ओर से दी गई दलील
इस मामले में मोदी सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा - जब तक केंद्र ब्रिटिश काल के कानून की फिर से जांच नहीं करता तब तक देशद्रोह कानून के प्रावधान पर रोक लगाना सही दृष्टिकोण नहीं हो सकता । वह बोले - हमने राज्य सरकारों को जारी गाइडलाइन में कहा है कि पुलिस अधीक्षक (SP) या उससे ऊपर रैंक के अधिकारी की मंजूरी के बिना राजद्रोह संबंधी धाराओं में एफआईआर दर्ज नहीं की जाएगी । उन्होंने कोर्ट से अपील की कि राजद्रोह कानून (Sediton Law) पर रोक न लगाई जाए ।