नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में एक बार फिर से लॉकडाउन लगाए जाने की बात कही है । असल में उन्होंने यह बात दिल्ली - एनसीआर में प्रदूषण पर लगाम लगाने में सरकार की नाकामी पर नाराजगी जताते हुए कही । इस दौरान कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगले दो-तीन दिनों में हालात को बेहतर बनाने के लिए आपातकालीन कदम उठाए जाएं । अगर जरूरी हो तो दिल्ली में कुछ दिनों के लिए लॉकडाउन लगाने पर भी विचार हो । कोर्ट के इस कड़े रुख पर केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया कि संबंधित राज्यों से बात कर तात्कालिक कदम उठाए जाएंगे । ऐसे में कोर्ट ने मामले की सुनवाई आगामी सोमवार तक के लिए टाल दी गई है ।
विदित हो कि प्रतिवर्ष दीपावली के बाद दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण का स्तर बहुत तेजी से बढ़ जाता है । इसके चलते लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है । इस सबको लेकर पिछले साल आदित्य दुबे नाम के छात्र ने याचिका दाखिल की थी, जिसमें उसने पंजाब-हरियाणा में फसलों की पराली जलाए जाने समेत तमाम कारणों को प्रदूषण का कारण बताया था ।
पिछले साल हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या से निपटने में केंद्र और राज्य सरकारों की नाकामी को देखते हुए जिम्मा अपने पूर्व जज जस्टिस मदन बी लोकुर को सौंपने की बात कही थी । तब केंद्र सरकार ने एक 15 सदस्य आयोग का गठन किया और कोर्ट से अनुरोध किया कि वह किसी पूर्व जज को ज़िम्मा न सौंपे । कोर्ट ने इस अनुरोध को मान लिया । हालांकि इस मामले के एक साल बीत जाने के बाद भी दिल्ली में स्थिति यथावत बनी हुई है ।
आज शनिवार के दिन चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत ने मामले पर विशेष सुनवाई की ।
इस दौरान कोर्ट में चीफ जस्टिस ने कहा स्थिति ऐसी है कि आपातकालीन कदम उठाना जरूरी हो गया है । हम चाहते हैं कि अगले दो-तीन दिनों में स्थिति सुधारी जाए । AQI स्तर 500 के पार हो गया है, वह नियंत्रण में आए. अगर इसके लिए दिल्ली में कुछ दिनों का लॉकडाउन लगाना जरूरी हो, तो उस पर भी विचार हो । केंद्र के वकील ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण आयोग की आज ही आपातकालीन बैठक बुलाई गई है । इसमें सभी राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होंगे । तेज़ कदम उठाए जाएंगे और जल्द स्थिति को नियंत्रण में लाने की कोशिश की जाएगी । सुप्रीम कोर्ट ने उनके इस आश्वासन को रिकॉर्ड पर लेते हुए सुनवाई सोमवार 15 नवंबर के लिए टाल दी ।
सुनवाई की शुरुआत में केंद्र ने कहा कि समस्या से निपटने के लिए बहुत तरह के कदम उठाए जा रहे हैं । पंजाब को सख्ती बरतनी पड़ेगी. जो लोग पराली जला रहे हैं, उन पर जुर्माना लगाना होगा । जजों को यह बात पसंद नहीं आई. चीफ जस्टिस ने कहा, "आप सिर्फ किसानों को दोषी ठहराना चाहते हैं । 70 प्रतिशत प्रदूषण दूसरी वजह से है. उस पर बात नहीं करना चाहते हैं।
कोर्ट ने कहा - सरकार पराली से निपटने के लिए दो लाख मशीनों के बात कह रही है , लेकिन इस मशीन की कीमत क्या है? क्या साधारण किसान इसे खरीद सकता है? सरकार यह भी कह रही है कि फसल अवशेष से बिजली बनाई जा सकती है , लेकिन थर्मल पावर कंपनियों के साथ किसानों का समझौता करवाया गया है? किसानों के सामने मजबूरी होती है कि उन्हें अगली फसल के लिए जमीन खाली करनी पड़ती है । कोर्ट ने यह भी कहा कि औद्योगिक धुंआ, गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण, धूल, पटाखे जैसी तमाम बातों को नजरअंदाज कर बस किसानों को दोष देना गलत है.
कोर्ट के इस रुख से रक्षात्मक मुद्रा में आए सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह किसी एक वर्ग या किसी एक राज्य को जिम्मेदार नहीं ठहरा रहे हैं । बाकी मुद्दों पर भी काम किया जा रहा है । मेहता ने सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए सोमवार तक का समय मांगा ।