नई दिल्ली । बिहार में भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ सरकार गिराने वाले नीतीश कुमार अब से थोड़ी देर बाद राजद - कांग्रेस - हम - लेफ्ट पार्टियों समेत अन्य दलों के सहयोग से फिर से महागठबंधन की सरकार बनाने जा रहे हैं । वह खुद सीएम पद की शपथ लेंगे , जबिक एक बार फिर से तेजस्वी को बिहार का डिप्टी सीएम बनाया जा रहा है । इस पूरे घटनाक्रम के बीच कभी नीतीश कुमार के करीबियों में शुमार और पार्टी उपाध्यक्ष रहे प्रशांत किशोर ने उनपर तंज कसा है । उन्होंने कहा - पिछले 10 साल में बिहार में राजनीतिक अस्थिरता का जो दौर 2012-13 से चला है, ये भी उसी दिशा में एक कदम है। पिछले 10 साल में ये उनका 10वां प्रयोग है, उनकी छवि काफी बदली है, मैं उसी नजरिए से उसे देखता हूं ।
इस बार सहज नहीं थे नीतीश
एक इंटरव्यू में जब प्रशांत किशोर से पूछा गया कि क्या नीतीश कुमार के भाजपा से अलग होने का फैसला हाल में लिया गया या इसकी भूमिका लंबे समय से बन रही थी । इस पर पीके ने कहा - असल में इस कार्यकाल में भाजपा और नीतीश कुमार के बीच कुछ सहज नहीं था । पूर्व में 2005 की बात करें या 2012-13 की , उस दौरान जैसे संबंध इस बार दोनों के बीच नजर नहीं आए । इस बार नीतीश को मुख्यमंत्री पद देने के बाद से ही वह असहज थे । भले ही वह मीडिया या अन्य मंच पर सब कुछ ठीक होने की बातें कह रहे थे , लेकिन अंदर खाने वह नाराज ही थे ।
नीतीश कुमार की स्थित काफी बदल गई
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजनीतिक सलाहकार के तौर पर भी काम करने वाले प्रशांत किशोर ने कहा कि मौजूदा समय में नीतीश कुमार की स्थिति काफी बदली है । जो लोग ऐसी समीक्षाएं कर रहे हैं कि इससे उनके राजनीतिक करियर और विश्वसनीयता पर असर नहीं पड़ेगा तो ऐसा नहीं है । . 2010 में नीतीश कुमार की पार्टी के विधायक 117 से ज्यादा थे , फिर घटकर 72 हो गए और अब संख्या 43 के आसपास है तो उसका असर तो है ही।
अहम बात की अब एजेंडा क्या होगा
नई सरकार को सलाह देते हुई पीके ने कहा, 'उनको बताना चाहिए कि ये सरकार किस एजेंडा, किस घोषणापत्र के तहत चलेगी क्योंकि पिछला चुनाव उन्होंने 7 निश्चय पार्ट 2 पर लड़ा था । आरजेडी ने भी घोषणापत्र जारी किया था. ऐसे में जब दोनों पार्टियां साथ में आ रही हैं, तो उनको बताना चाहिए कि वह किन मुद्दों पर काम करेंगी । वह बोले , नेता दल बदलें या ना बदलें लेकिन लोगों को उनके हिसाब की चीजें मिलें तो उनको कोई फर्क नहीं पड़ता है । हो सकता है किसी की नजर में ये कदम नैतिक रूप से सही हो या न हो लेकिन जनता को इससे मतलब है कि जमीन पर काम हो रहा है या नहीं ।