Thursday, April 25, 2024

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स्वामी विवेकानंद को याद कर रहा देश, ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के मौके पर जाने उनसे जुड़ी बातें

अंग्वाल न्यूज डेस्क
स्वामी विवेकानंद को याद कर रहा देश, ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के मौके पर जाने उनसे जुड़ी बातें

नई दिल्ली। देशभर में शनिवार को स्वामी विवेकानंद के 156वें जन्म दिवस को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है। स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उनका बचपन का नाम नरेन्द्र नाथ था बाद में रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें विवेकानंद नाम दिया था। स्वामी विवेकानंद ने काफी समय पहले ही युवाओं की ताकत को पहचान लिया था यही वजह है कि उन्होंने देश की आजादी के लिए युवाओं का आह्वान करते हुए कहा था कि उठो, जागो और तब तक चलते रहो जबतक कि मंजिल की प्राप्ति न हो जाए।

गौरतलब है कि स्वामी के इस ओजस्वी वाणी से भारत का युवा जागृत हो उठा था। उनके एक वाक्य ने देश के युवाओं को झकझोर दिया था। स्वामी विवेकानंद का स्पष्ट तौर पर मानना था कि युवा ही देश का भविष्य हैं। आज पूरे देश में भ्रष्टाचार और अपराध का राज हो गया है। ऐसे में सही दिशा से भटक रहे युवाओं को सही राह दिखाने के लिए उन्हें जगाने की जरूरत है। बता दें कि विवेकानंद का निधन महज 39 साल की आयु में ही हो गया था। शिकागो के धर्म संसद में जो बातें उन्होंने कही वह आज भी काफी प्रासंगिक है। 

-अमेरिकी भाइयों और बहनों, आपने जिस स्नेह के साथ मेरा स्वागत किया है उससे मेरा दिल भर आया है। मैं दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा और सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं। सभी जातियों और संप्रदायों के लाखों-करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं।

-मैं इस मंच पर बोलने वाले कुछ वक्ताओं का भी धन्यवाद करना चाहता हूं जिन्होंने यह जाहिर किया कि दुनिया में सहिष्णुता का विचार पूरब के देशों से फैला है।

-मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं।

-मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों और सभी देशों के सताए गए लोगों को अपने यहां शरण दी। मुझे गर्व है कि हमने अपने दिल में इजराइल की वो पवित्र यादें संजो रखी हैं जिनमें उनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तहस-नहस कर दिया था और फिर उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली।


-मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और लगातार अब भी उनकी मदद कर रहा है।

-मैं इस मौके पर वह श्लोक सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद किया और जिसे रोज करोड़ों लोग दोहराते हैं, जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग-अलग रास्ते चुनता है। ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं।

-मौजूदा सम्मेलन जो कि आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से है, वह अपने आप में गीता में कहे गए इस उपदेश इसका प्रमाण हैरू जो भी मुझ तक आता है, चाहे कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग अलग-अलग रास्ते चुनते हैं, परेशानियां झेलते हैं, लेकिन आखिर में मुझ तक पहुंचते हैं।

-सांप्रदायिकता, कट्टरता और इसके भयानक वंशजों के धार्मिक हठ ने लंबे समय से इस खूबसूरत धरती को जकड़ रखा है। उन्होंने इस धरती को हिंसा से भर दिया है और कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हो चुकी है। न जाने कितनी सभ्याताएं तबाह हुईं और कितने देश मिटा दिए गए।

-यदि ये खौफनाक राक्षस नहीं होते तो मानव समाज कहीं ज्यादा बेहतर होता, जितना कि अभी है। लेकिन उनका वक्त अब पूरा हो चुका है। मुझे उम्मीद है कि इस सम्मेलन का बिगुल सभी तरह की कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का विनाश करने वाला होगा। चाहे वह तलवार से हो या फिर कलम से।

 

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