नई दिल्ली । देश में समलैंगिकता को लेकर पिछले लंबे समय से चली आ रही बहस का आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने अंत कर दिया। कोर्ट ने दो वयस्क लोगों के बीच सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया, लेकिन फैसला सुनाने से पहले कोर्ट की पांच सदस्यीय ने कई मुद्दों पर अपनी-अपनी राय रखी। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली शीर्ष अदालत की संवैधानिक पीठ ने चार अलग-अलग फैसले सुनाए। इस दौरान पीठ ने कहा कि वयस्कों के बीच सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। हालांकि पीठ के पांचों जजों ने कई मुद्दों पर अपनी-अपनी राय रखी, जो एक दूसरों से मेल भी नहीं खाती। तो आइये जानते हैं जजों ने ऐतिहासिक फैसला सुनाए जाने से पहले क्या क्या कहा।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर क्या बोले...
असल में पांच सदस्यीय पीठ के अध्यक्ष चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर ने इस ऐतिहासिक फैसले को लेने के साथ ही कहा कि दो व्यस्कों की व्यक्तिगत पसंद को इजाजत दी जानी चाहिए। भारत देश में सबको समान अधिकार सुनिश्चित करने की जरूरत है। समय आ गया है कि समाज को पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिए। हर बादल में इंद्रधनुष खोजना चाहिए।
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377 को किसी पर थोपना त्रासदी होगा - जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़
इस मौके पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि धारा 377 को किसी पर थोपना त्रासदी है. इसमें सुधार किए जाने की जरूरत है । LGBT समुदाय को उनके यौनिक झुकाव से अलग करना उन्हें उनके नागरिक और निजता के अधिकारों से वंचित करना है । जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि एलजीबीटी समुदाय को औपनिवेशिक कानून के जंजाल में नहीं फंसाया जाना चाहिए ।
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फैसला एक्ट पर आधारित है
वहीं जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा कि यह फैसला संसद द्वारा पारित मेंटल हेल्थकेयर एक्ट पर आधारित है। इस अधिनियम में संसद ने कहा कि समलैंगिकता मानसिक विकार नहीं है।
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लोकतांत्रिक व्यवस्था में बदलाव जरूरी
इस दौरान पीठ ने कहा कि संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था में परिवर्तन जरूरी है। जीवन का अधिकार मानवीय अधिकार है। इस अधिकार के बिना बाकी अधिकार औचित्यहीन हैं। इस दौरान पीठ ने साफ किया कि यौन रुझान बॉयलॉजिकल है, ऐसे में इस पर रोक लगाना संवैधानिक अधिकारों का हनन होगा।
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विविधता को स्वीकृति देनी होगी
इस दौरान पीठ ने कहा कि व्यक्तिगत पसंद को सम्मान देने का समय आ गया है। एलजीबीटी को भी समान अधिकार है । हमारी विविधता को स्वीकृति देनी होगी। राइट टु लाइफ उनका अधिकार है और यह सुनिश्चित करना कोर्ट का काम है। सहमति से बालिगों के समलैंगिक संबंध हानिकारक नहीं है। IPC की धारा 377 संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत मौजूदा रूप में सही नहीं है ।