नई दिल्ली । भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले कुछ समय में खराब दौर से गुजर रही है। इस सुस्ती के माहौल के बीच खबर आ रही है कि हालात में सुधार के लिए केंद्रीय रिजर्व बैंक से 45 हजार करोड़ रुपये की मदद मांग सकती है । न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने दावा किया है कि केंद्र सरकार घटते राजस्व को बढ़ाने के लिए यह कदम उठा सकती है । हालांकि इससे पहले भी आरबीआई और केंद्र की मोदी सरकार के बीच आर्थिक मुद्दों को लेकर मतभेद उभरा था । अगर ऐसा होता है तो यह लगातार तीसरा साल होगा , जब सरकार के पास अंतरिम लाभांश आएगा । मौजूदा समय में सरकार करीब 19.6 लाख करोड़ रुपये राजस्व की कमी से जूझ रही है । इसका कारण आर्थिक सुस्ती और कॉरपोरेट टैक्स में दी गई राहत है ।
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबाकि , भारतीय अर्थव्यवस्था के लिहाज से चालू वित्त वर्ष में आर्थिक संकट बना रहेगा । आर्थिक सुस्ती के चलते विकास दर 11 साल के सबसे निचले स्तर पर रह सकती है । इस सब के बीच RBI से मदद लेकर मोदी सरकार अंतरिम राहत पा सकती है । आरबीआई अफसरों के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि आरबीआई से मदद को नियमित बनाए जाने की तैयारी है , लेकिन इस साल को अपवाद माना जाए । इस समय सरकार को 35,000 करोड़ से 45,000 करोड़ रुपये तक के मदद की जरूरत है ।
बहरहाल , अगर ऐसा हुआ तो एक बार फिर से सरकार और RBI के बीच मतभेद उभरेंगे । रिजर्व बैंक ने केंद्र को लाभांश (डिविडेंड) के तौर पर 1.76 लाख करोड़ रुपये देने की बात कही थी । इस रकम में से चालू वित्त वर्ष (2019-20) के लिए 1.48 लाख करोड़ रुपये दिए गए थे ।
रिपोर्ट के मुताबिक आरबीआई मोटे तौर पर करंसी और सरकारी बॉन्ड के ट्रेडिंग से मुनाफा कमाता है, जिसका एक हिस्सा RBI अपने परिचालन और इमरजेंसी फंड के तौर पर रखता है । इसके बाद बची हुई रकम डिविडेंड के तौर पर सरकार के पास जाता है । हालांकि पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल के कार्यकाल में फंड ट्रांसफर को लेकर ही विवाद देखने को मिला था । इस विवाद का अंत उर्जित पटेल के इस्तीफे से हुआ ।