नई दिल्ली । आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर जहां यूपी में सपा-बसपा ने अपना गठबंधन कर अपनी रणनीति पर काम शुरू किया, वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने सीबीआई के मुद्दे को उठाकर विपक्षी दलो के नेतृत्व का दावा ठोक दिया है। इस सब के बीच कांग्रेस एक ऐसी पार्टी बनकर सामने आई है, जिसके पक्ष में प्रियंका गांधी को पार्टी महासचिव बनाने के अलावा हाल के समय में हवा बहती नजर नहीं आई है। इस सब के बीच अब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने फिर से अल्पसंख्यकों की ओर अपना रुख किया है। लोकसभा चुनावों से पहले एक बार फिर से कांग्रेस को मुसलमानों की याद आई है, इसलिए कांग्रेस ने अपने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक मोर्चे की तरफ से 7 फरवरी को 'मेरा संविधान, मेरा स्वाभिमान' नाम से एक राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया गया है। राहुल गांधी इस अधिवेशन को संबोधित करेंगे।
देशभर से आएंगे समाज के लोग
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक मोर्चे के दिल्ली में आयोजित होने वाले इस राष्ट्रीय अधिवेशन में पूरे देश से अल्पसंख्यक समाज के लोग आएंगे। कांग्रेस के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक मोर्च की ओर से आयोजित इस अधिवेशन में अल्पसंख्यक समाज के मुद्दों को ही उठाया जाएगा। कांग्रेस के इस अधिवेशन के पीछे एक बार फिर से मुस्लिम समाज के लोगों को अपनी पार्टी की ओर आकर्षित करने की योजना है।
सपा-बसपा गठबंधन से चुनौती
असल में पिछले यूपी में सपा-बसपा के गठबंधन के बाद दोनों ही दलों ने कांग्रेस के अस्तित्व पर सवाल उठाए थे। वहीं एक समय खुद को मुसलमानों की पार्टी बताने वाली कांग्रेस पिछले कुछ समय से भाजपा की विचारधारा का अनुसरण करने लगी थी। इसी क्रम में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को चुनावों से पहले दुनिया भर के मंदिरों में जाते हुए देखा गया। लेकिन अब मौजूदा सियासी समीकरणों में कांग्रेस को अल्पसंख्यक वोटों को लेकर चिंता सताने लगी है। असल में यूपी समेत देश के कई राज्यों में अल्पसंख्यक समाज के मतदातों ने निर्णायक भूमिका निभाई है, जिसके चलते अब कांग्रेस ने एक बार फिर से इन्हें रिझाने के लिए रणनीति बनाई है।