नई दिल्ली । भाजपा के फायरब्रांड नेताओं में शुमार नेता और राज्यसभा नेता सुब्रमण्यम स्वामी इन दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से खफा हैं। उनका कहना है कि मोदी सरकार उनके विचारों को अहम नहीं मानती, इसलिए उनके सुझावों को तवज्जों नहीं दी जा रही । इस सब के बीच स्वामी ने एक ट्वीट कर अपने विचार जाहिर किए हैं । उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए भाजपा को चेतावनी दी है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो वह चीन जा सकते हैं। वहीं उनके इस रुख से स्वामी के प्रशंसक काफी चिंतित हैं और उन्होंने स्वामी से चीन न जाने की अपील की है । इस दौरान ट्वीटर पर एक शख्स ने जब उनसे राम मंदिर समेत हिंदू हित के मुद्दे छोड़ने पर सबके खुश रहने की बात लिखी तो उन्होंने साफ कर दिया कि वह राम मंदिर का मुद्दा नहीं छोड़ सकते ।
बता दें कि सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने एक ट्वीट में लिखा - चीन की प्रसिद्ध सिंघुआ यूनिवर्सिटी ने सितंबर में मुझे स्कॉलर्स की सभा में बोलने के लिए बुलाया है । इस दौरान विषय है- चीन का आर्थिक विकास-7 वर्षों की समीक्षा । चूंकि नमो मेरे विचारों को जानना नहीं चाहते, तो मैं चीन जा सकता हूं । पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ सार्वजनिक बयानों से बचने वाले सुब्रमण्यम स्वामी ने पहली बार अपने ट्वीट में नमो का जिक्र किया है । इससे पहले हाल में स्वामी ने ईवीएम को लेकर भी जो कुछ बोला, वह विपक्ष की लाइन वाला बयान रहा । स्वामी ने हाल में कहा कि मैंने तो बहुत पहले ईवीएम को लेकर सुप्रीम कोर्ट को सबूत दिए थे । कोर्ट ने माना भी था कि आज ईवीएम में धांधली की जा सकती है. उन्होंने कहा कि जो मैं पहले बोल चुका हूं, ये लोग (विपक्ष) अब सवाल उठा रहे हैं ।
पिछली सरकार में अरुण जेटली के वित्त मंत्री रहते हुए देश की अर्थव्यवस्था को लेकर सवाल खड़े करते रहे हैं । स्वामी की पहचान आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ के तौर पर भी होती है, वहीं देश-दुनिया के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान उन्हें बुलाते रहते हैं । असल में सुब्रमण्यम स्वामी के नाम 24 साल में ही हार्वर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल करने का तमगा है। वह 27 साल की उम्र में हार्वर्ड में पढ़ाने लगे थे । बाद में उन्हें 1968 में दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकॉनामिक्स में पढ़ाने का आमंत्रण मिला । तब स्वामी दिल्ली आए और 1969 में आईआईटी दिल्ली से जुड़ गए ।
हालांकि, पंचवर्षीय योजनाओं पर सवाल उठाने और विदेशी सहायता पर निर्भरता खत्म करने से जुड़े बयानों के चलते तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी की उन्हें नाराजगी झेलनी पड़ी थी । जिसके चलते उन्हें 1972 में आईआईटी दिल्ली की नौकरी गंवानी पड़ी । इसके बाद उन्होंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया । 1991 में मुकदमा जीतने पर वह सिर्फ एक दिन के लिए आईआईटी दिल्ली गए भी तो अपना इस्तीफा देने के लिए ।
इसके बाद वर्ष 1977 में वह जनता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में रहे और बाद में पार्टी के अधय्क्ष भी बनें , लेकिन 2013 में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय भाजपा में कर दिया। इसके बाद 2016 में भाजपा ने उन्हें राज्यसभा से सदन में दाखिल किया । बहरहाल, इस दौरान वह विपक्ष के साथ अपनी ही पार्टी के नेताओं को लेकर सवाल उठाते आए हैं।