दिल्ली। अब आतंकवादी या फिर चरमपंथी सोशल मीडिया के जरिए अफवाह नहीं फैला पाएंगे। वैज्ञानिकों ने उन लोगों की पहचान करने का तरीका ढूंढ निकाला है। इस तरीके से सोशल मीडिया खातों पर आपत्तिजनक चीजें लिखने, बोलने या साझा करने से पहले ही उनकी पहचान मुमकिन हो सकेगी। गौर करने वाली बात है कि उपभोक्ताओं को परेशान करने, नए सदस्यों की भर्ती करने और हिंसा भड़काने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले ऑनलाइन चरमपंथी समूहों की संख्या और उनका आकार बढ़ रहा है। मुख्य सोशल मीडिया साइट ऐसी प्रवृत्ति को रोकने की दिशा में काम कर रही है।
गौरतलब है कि ट्विटर ने साल 2016 में आईएसआईएस से जुड़े 3 लाख 60 हजार खातों को बंद किया है। साइट के द्वारा एक खाता को रोक देने के बाद नया खाता खोलने या फिर एक साथ कई खातों को चलाने की संभावना काफी कम हो जाती है। यहां आपको बता दें कि मैसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के वैज्ञानिक ने बताया कि सोशल मीडिया आज के समय में हर किसी के लिए एक बड़ा ताकतवर मंच बन गया है। लोग इसका इस्तेमाल ‘‘नफरत से भरे दुष्प्रचार फैलाने, हिंसा भड़काने और आतंकवादी हमलों को अंजाम देने के लिए करते हैं, जिससे यह आम लोगों के लिए खतरा बन गया है।’’
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शोधकर्ताओं ने करीब 5,000 ऐसे ‘‘सीड’’ उपयोक्ताओं से ट्विटर के आंकड़े इकट्ठा किए, जिनसे आईएसआईएस के सदस्य परिचित थे या जो आईएसआईएस के कई ज्ञात सदस्यों से मित्र या फॉलोवर के तौर पर जुड़े थे। उन्होंने खबरों, ब्लॉग, कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों की ओर से जारी की गई रिपोर्टों और थिंक टैंक के जरिए उनके नाम हासिल किए।
वैज्ञानिकों ने चरमपंथियों के उन ट्वीट पर ज्यादा ध्यान दिया जिन्हें ट्विटर ने आतंकवादी प्रकृति का करार दिया था। चरमपंथी व्यवहार के आंकड़े और आईएसआईएस के असल यूजर डेटा का इस्तेमाल करते हुए शोधकर्ताओं ने नए चरमपंथी उपयोक्ताओं की पहचान पहले ही कर लेने का तरीका विकसित किया।