काशी । देश में होली का त्योहार कई राज्यों में अपनी अपनी पुरानी परंपराओं के अनुसार समय से पहले ही खेलना शुरू हो जाता है । जहां यूपी के बरसाने में खेले जाने वाली होली अपने स्वरूप के लिए प्रसिद्ध है , वहीं धर्म नगरी के रूप में विख्यात काशी में होली की शुरूआत रंगभरी एकादशी से ही हो जाती है । इस दिन से काशीवासी अपने ईष्ट भोलेनाथ के साथ महाश्मसान में चिता भस्म के साथ खेलकर होली के पहले इस पर्व की शुरूआत करते हैं। इसके बाद से काशी में होली की शुरुआत हो जाती है ।
विदित हो कि रंगभरी एकादशी पर काशी के महाश्मशान में खेली गई इस अनूठी होली एक पुरानी दंतकथा से जुड़ी है । मान्यता के अनुसार , इस दिन भगवान विश्वनाथ मां पार्वती का गौना कराकर काशी पहुंचे तो उन्होंने अपने गणों के साथ होली खेली थी । लेकिन वो अपने प्रिय श्मशान पर बसने वाले भूत, प्रेत, पिशाच और अघोरी के साथ होली नहीं खेल पाए थे । इसीलिए रंगभरी एकादशी से विश्वनाथ इनके साथ चिता-भस्म की होली खेलने महाश्मशान पर आते हैं ।
काशी के महाश्मशान हरिश्चंद्र घाट , जहां कभी भी चिता की आग ठंडी नहीं पड़ती , यहां के महाश्मशान में रंगभरी एकादशी को चिता की भस्म से होली खेली जाती है।
इसके बाद से ही काशी में पंचदिवसीय होली पर्व शुरू होती है। हरिश्चंद्र घाट पर महाश्मशान नाथ की आरती से इसकी शुरुआत होती है । इस दौरान एक भव्य शोभायात्रा भी निकाली जाती है।
ऐसी भी मान्यता है कि जब राजा दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने प्राण त्याग दिए तो भोलेनाथ और अन्य देवगण नाराज हो गए। कामदेव के भस्म होने के बाद माता पार्वती का विवाह शिव जी के साथ हुआ . मान्यता अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन ही भोलेनाथ माता पार्वती का गौना कराकर काशी ले आए जिससे शिवजी के गणों को काफी खुशी हुई।
विदित हो कि काशीवासी महाश्मशान को छूत-अछूत, अपशगुन से परे और नवजीवन से मुक्ति पाने का द्वार मानते हैं । यही कारण है कि वे इस तरह की होली में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं ।