नई दिल्ली । केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले दिनों भारी हंगामे के बाद राज्यसभा से भी दो कृषि विधेयकों को पास करवा लिया । हालांकि इस बिल को लेकर संसद से लेकर सड़क तक काफी हंगामा हुआ , लेकिन सरकार का कहना है कि ये बिल किसानों के लिए रक्षा कवच का काम करेंगे , जबकि विपक्षी दल और कुछ किसान संगठन इस बिल को लेकर परेशान हैं । उनका कहना है कि ये बिल उन अन्नदाताओं की परेशानी बढ़ाएंगे, जिन्होंने अर्थव्यवस्था को संभाले हुआ है । अन्नदाताओं के लिए काम करने वाले संगठनों और कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इस कानून से किसान अपने ही खेत में सिर्फ मजदूर बनकर रह जाएगा। साथ ही इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) आधारित खरीद प्रणाली का अंत हो सकता है और निजी कंपनियों द्वारा शोषण बढ़ सकता है। हालांकि सरकार का लगातार कहना है कि कुछ विपक्षी दल राजनीति करते हुए इस मामले में किसानों को भटका रहे हैं। हालांकि इस बिल को लेकर भाजपा सरकार की सहयोगी पार्टी अकाली के भी विरोध में उतर आने और केंद्रीय मंत्री हरसिमरन कौर बादल के इस्तीफा देने पर विपक्षी जमकर तंज भी कस रहे हैं ।
असल में किसानों और सरकार के बीच मतभेद कुछ मुद्दों पर जिन्हें लेकर दोनों पक्षों के अलग अलग तर्क हैं । आपको बता दें कि लोकसभा से पास होने के बाद गति रविवार को केंद्र की मोदी सरकार ने किसानों से संबंधित दो विधेयक राज्यसभा से भी पास कर दिए हैं ।
चलिए बताते हैं कि आखिर ये दोनों बिल कौन कौन से हैं...
1- कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020 (The Farmers’ Produce Trade and Commerce (Promotion and Facilitation) Bill, 2020)
आखिर क्या है पास हुए विधेयकों का उद्देश्य
असल में इस प्रस्तावित कानून के जरिए सरकार किसानों को बड़ी राहत देने की योजना बना रही है । सरकार का उद्देश्य किसानों को अपने उत्पाद निर्धारित मंडियों से बाहर बेचने की छूट दिलाना है । इतना ही नहीं सरकार ने अपने इन प्रस्तावित कानून के माध्यम से किसानों को उनकी उपज के लिए प्रतिस्पर्धी वैकल्पिक व्यापार माध्यमों से फायदा पहुंचाना है । खास बात यह है कि इस कानून के तहत किसानों से उनकी उपज की बिक्री पर कोई सेस या फीस नहीं ली जाएगी।
किसानों को इससे क्या होगा लाभ
चलिए बताते हैं कि आखिर यह कानून किस तरह किसानों को लाभ पहुंचाएगा...
1- असल में यह कानून किसानों के लिये नये विकल्प उपलब्ध करायेगा।
2- इस नए कानून के माध्यम से उनकी फसल बेचने में लगने वाली लागत को भी कम किया जाएगा ।
3- किसानों को उनकी फसल का पहले से बेहतर मूल्य दिलाना ।
4- इस व्यवस्था के जरिए अगर आपके राज्य में किसी वस्तु का ज्यादा पैदावार हुआ है और दूसरे राज्य में कम तो किसान वहां अपनी फसल बेचकर ज्यादा मुनाफा कमा सकता है ।
5- इस व्यवस्था से देश के सभी किसानों को पहले की तुलना में अधिक आर्थिक लाभ मिलेगा ।
6- इसके माध्यम से किसानों के लिए एक सुगम और मुक्त माहौल तैयार हो सकेगा।
7- किसानों को अपनी सुविधा के हिसाब से कृषि उत्पाद खरीदने और बेचने की आजादी होगी ।
8- जब किसानों के पास विकल्प होंगे तो उनकी बाजार की लागत कम हो जाएगी । इसका लाभ उन्हें फसल की ज्यादा कीमत के रूप में मिलेगा ।
9- इतना ही नहीं कोई भी पैनकार्ड धारक , कंपनी, सुपर मार्केट किसी भी किसान का माल किसी भी जगह पर खरीद सकते हैं। इसका एक बड़ा लाभ यह होगा कि मंडी से बाहर होने वाली हर तरह की खरीद पर किसी भी तरह का टैक्स नहीं लगेगा ।
आखिर क्यों हो रहा है विरोध
असल में जहां इस विधेयक को लेकर कई किसानों की चिंता है तो कई मुद्दों पर विपक्ष की राजनीति । बहरहाल , किसानों की चिंता को भी एक -एक करके आपको बताते हैं ।
1- इस विधेयक को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि अगर किसान तय मंडी में अपना माल न बेचकर बाहर अपनी फसल बेचेगा तो राज्यों को 'मंडी शुल्क' से होने वाले राजस्व का नुकसान होगा।
2-इसी क्रम में यदि पूरा बाजार ही मंडियों से बाहर चला जाएगा तो कमीशन एजेंट के लिए कोई काम नहीं बचेगा ।
3-किसानों और विपक्षी दलों को यह डर है कि इससे अंततः न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) आधारित खरीद प्रणाली का अंत हो सकता है और निजी कंपनियों द्वारा शोषण बढ़ सकता है।
4- किसानों का डर है कि जब उनकी फसल की खरीद मंडी में नहीं होगी तो सरकार इस बात को रेगुलेट नहीं कर पाएगी कि उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिल भी रहा है या नहीं ।
5- इस प्रस्तावित कानून में MPS ( एमएसपी ) की गारंटी नहीं दी गई है, जिसे लेकर किसान और विपक्ष ज्यादा हंगामा कर रहा है। किसान अपनी फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी मांग रहे हैं।
6- किसानों का कहना है कि एमएसपी को वह किसानों का कानूनी अधिकार बनवाना चाहते हैं, ताकि जो भी उस रेट से कम पर खरीद करे उसके खिलाफ कार्रवाई हो ।
7- किसानों को डर है कि विवाद होने पर वह कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा सकते , क्योंकि इन विवादों का निपटारा एसडीएम और डीएम करेंगे । ये लोग सरकार के अधीन काम करते हैं , जो राज्य सरकार के दबाव में हो सकते हैं।
8- इतना ही नहीं व्यापारियों को डर सता रहा है कि नए कानून में साफ लिखा है -मंडी के अंदर फसल आने पर मार्केट फीस लगेगी और मंडी के बाहर अनाज बिकने पर मार्केट फीस नहीं लगेगी ।
9- व्यापारियों का कहनाा है कि ऐसे हालात में देश की मंडियां तो धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी और कोई भी मंडी से माल नहीं खरीदेगा।
2- कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 (The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement of Price Assurance and Farm Services Bill, 2020)
अगर मोदी सरकार द्वारा संसद से पास करवाए गए इस दूसरे प्रस्तावित कानून के बारे में बात करें तो इसके तहत किसानों को उनके होने वाले कृषि उत्पादों को पहले से तय दाम पर बेचने के लिये कृषि व्यवसायी फर्मों, प्रोसेसर, थोक विक्रेताओं, निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ अनुबंध करने का अधिकार मिलेगा।
आखिर इस बिल से क्या होगा लाभ
सरकार का कहना है कि इस प्रस्तावित कानून की मदद से अब तक किसान का अपनी फसल को लेकर जो जोखिम बना रहता था अब वह उसके उस खरीदार के लिए हो जाएगा , जिससे किसान ने अनुबंध किया है । इस कानून किसानों को आधुनिक तकनीक और बेहतर इनपुट तक पहुंच देने के अलावा, यह विपणन लागत को कम करके किसान की आय को बढ़ावा देता है।
1- बता दें कि इस प्रस्तावित कानून को सरकार ने कांट्रैक्ट फार्मिंग के मद्देनजर लागू किया है ।
2-इस कानून के तहत अब किसान को उसकी फसल का कम जोखिम होगा और उसकी आय में सुधार होगा ।
3- अब देश का हर किसान किसी भी प्रोसेसर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ सीधे जुड़ने में सक्षम होगा।
4- इस कानून की मदद से देश में कांट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा मिलेगा , जिसके तहत कोई भी बड़ी कंपनी किसी किसान के साथ उसकी फसल को लेकर एक करार पहले ही कर लेगी । फसल किस दाम पर खरीदी जाएगी , इसपर भी बात पहले ही हो जाएगी । इस
5- इस व्यवस्था के चलते किसान की वह समस्या खत्म हो जाएगी , जिसमें वह अच्छे दाम पर फसल नहीं बेच पाने की बात कहता है ।
6- कांट्रैक्ट फार्मिंग (Contract Farming) में कोई भी विवाद होने पर उसका फैसला सुलह बोर्ड में होगा, जिसका सबसे पावरफुल अधिकारी एसडीएम को बनाया गया है. इसकी अपील सिर्फ डीएम यानी कलेक्टर के यहां होगी।
क्यों हो रहा है इसका विरोध
चलिए अब इस दूसरे विधेयक के विरोध से जुड़ी कुछ बातों का जिक्र करते हैं । असल में किसानों और विपक्षी दलों का इस बिल को लेकर कहना है कि इस कानून को कुछ चुनिंदा व्यापारियों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है , जिनका लक्ष्य भारतीय खाद्य व कृषि व्यवसाय पर हावी होने की है ।
1- किसानों और विपक्ष का कहना है कि यह प्रस्तावित कानून किसानों की मोल-तोल करने की शक्ति को कमजोर करेगा।
2- इतना ही नहीं इस कानून के लागू होने के बाद बड़ी निजी कंपनियों, निर्यातकों, थोक विक्रेताओं और प्रोसेसर को इससे कृषि क्षेत्र में बढ़त मिल सकती है।
3- किसानों को इस बात का डर है कि इस कानून से किसान अपने ही खेत में सिर्फ मजदूर बनकर रह जाएगा ।
4- किसानों और विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार पश्चिमी देशों के खेती का मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है ।
5- किसानों का ऐसा मानना है कि कांट्रैक्ट फार्मिंग में कंपनियां किसानों का शोषण करेंगी । इतना ही नहीं उनके उत्पाद को खराब बताकर फसल लेने से मना भी कर सकती है , जो विवाद का कारण बनेगा ।
6-इस सबसे अलग , विपक्षी दलों और व्यापारियों को यह डर है कि जब बड़े मार्केट लीडर फसल को किसानों के खेतों से ही खरीद लेंगे तो देश भर में आढ़तियों को कौन पूछेगा । इतना ही नहीं लोगों का रुख मंडियों की ओर नहीं होगा ।
आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन की मंजूरी मिली
इस पर क्या है सरकार का दावा
इसी क्रम में संसद से एशेंसियल कमोडिटी एक्ट में संशोधन की मंजूरी मिल गई है। सरकार का दावा है कि देश में अधिकांश कृषि उत्पाद सरप्लस हैं । लेकिन देश में कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग का अभाव होने के चलते किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिलता । ऐसा इसलिए भी है क्योंकि आवश्यक वस्तु अधिनियम की तलवार उनपर हमेशा लटकती रहती थी । यही कारण है कि जब भी जल्दी खराब हो जाने वाली फसल की बंपर पैदावार होती है, तो किसानों को भारी नुकसान होता है । इस सबके चलते ही संसद ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन की मंजूरी दे दी है । इसके तहत अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दालें, प्याज और आलू आदि को इस एक्ट से बाहर किया गया है । इतना ही नहीं व्यापारियों को भी लाभ देते हुए इन कृषि उत्पादों की एक लिमिट से अधिक स्टोरेज पर लगी रोक हटा ली गई है। हालांकि सरकार ने साफ कहा है कि जब भी सरकार को लगेगा वह पहले जैसी व्यवस्था को लागू कर सकती है ।
किसानों के संशय बरकरार
भले ही सरकार कई दावे कर रही हो लेकिन विपक्ष और किसानों के कुछ संशय बरकरार हैं । किसानों का कहना है कि एक्ट में संशोधन बड़ी कंपनियों और बड़े व्यापारियों के हित में किए गए हैं । ये कंपनियां और सुपर मार्केट सस्ते दाम पर उपज खरीदकर अपने बड़े-बड़े गोदामों में उसका भंडारण करेंगे और बाद में ऊंचे दामों पर ग्राहकों को बेचेंगे । आखिर इस एक्ट की जरूरत क्यों पड़ी
विदित हो कि पूर्व में व्यापारी किसानों से उनकी फसल सस्ते दामों पर खरीदकर अपने स्टोरों में भर लेते थे । इसके बाद उक्त वस्तु की बाजार में कमी बताकर उसके दाम बढ़वा लेते थे । इसके बाद कालाबाजारी के खेल में जुट जाते थे । इस गोरखधंधे को बंद करने के लिए एसेंशियल कमोडिटी एक्ट यानी आवश्यक वस्तु अधिनियम बनाया गया था । इसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक थी । हालांकि अब सरकार ने व्यापारियों को लाभ देते हुए उनपर लगी हुई रोक को हटा लिया है ।