नई दिल्ली । राष्ट्रपति चुनावों में एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने आखिरकार इतिहास रच दिया है । उन्होंने प्रतिद्दंदी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को साढ़े तीन लाख से ज्यादा मतों से हराकर देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होने का गौरव हासिल किया है । असम के रायगढ़नगर से दिल्ली में राष्ट्रपति भवन तक के सफर में द्रौपदी मुर्मू ने कई चुनौतियों और दर्द का सामना करना पड़ा है । यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने बधाई संदेश में उन्हें देश की आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा करार दिया है । चलिए तो हम बताते हैं नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें....
- असल में असम के रायगढ़नगर से अपने जीवन का सफर शुरू करने वाली द्रौपदी मुर्मू का सफरनामा काफी कठिनाइयों और दुख भरी कहानियों से भरा हुआ है । हालांकि इन सब चुनौतियों और कठिनाइयों के बीच उनका जीवन साधारण और लगातार अनुशासनात्मक से जिया है ।
- द्रौपदी मुर्मू ने यहां तक पहुंचने के लिए एक लंबा सफर तय किया है । 2009-2015 के बीच केवल छह वर्षों में, मुर्मू ने अपने पति, दो बेटों, मां और भाई को खो दिया ।
- इस दर्द के बावजूद वह टूटी नहीं और आज भीवह प्रतिदन तड़के 3 बजे उठती हैं और अपना नियमित योग व ध्यान करती हैं , फिर नाश्ता करती हैं और उसके बाद अखबार व कुछ आध्यात्मिक किताबें पढ़ती हैं ।
- उन्हें करीब से जानने वाले विकास महन्तो का कहना है कि द्रौपदी मुर्मू एक असाधारण और मेहनती व समय की पाबंद महिला हैं ।
- उनके करीबियों का कहना है कि उन्हें अध्यात्म पर यूट्यूब वीडियो देखना पसंद है ।
- उनके जीवन में ब्रह्माकुमारियों ने बहुत बदलाव लाया ।
- द्रौपदी मुर्मू ने अपने जीवन में अपने दोनों बेटों को खो दिया , जिसके बाद वह अंदर ही अंदर दुखी रहती थीं ।
- वह राजनीति से दूर ही रहती थी , लेकिन अपने दुखों से दूर होने के लिए उन्होंने ब्रह्मकुमारी की शरण लीं और उसके बाद उनके भीतर सकारात्मक बदलाव आने लगे । वह बेहतर महसूस करने लगीं और सामाज सेवा के काम में हिस्सा लेने लगी ।
- उनके साथ कई सालों से रहने वाले विकास महन्तो ने कहा कि, वह अपने साथ हर समय एक अनुवाद और ब्रह्माकुमारी की किताब रखती हैं ।
- द्रौपदी मुर्मू शुद्ध शाकाहारी हैं, जो प्याज और लहसुन भी नहीं खातीं । हालांकि उन्हें ओडिशा की विशेष मिठाई "चेन्ना पोड़ा" बहुत पसंद है ।
- विकास महन्तो से उनके बारे में जानकारी देते हुए कहा कि भाजपा संसदीय बोर्ड द्वारा मुर्मू के नाम पर मुहर लगाने के बाद जैसे ही उन्हें इसकी सूचना दी गई तो वह भावुक हो गई थीं । उन्हें अपने पति और बेटों की याद आ रही थी । वह थोड़ा रोई, और फिर सामान्य हो गईं क्योंकि खबर के सामने आने के बाद तुरंत भीड़ जमा हो गई थी ।