Tuesday, April 16, 2024

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मोदी सरकार की ये हैं वो 10 मजबूरियां , जिसके चलते वापस लिए तीनों कृषि कानून

अंग्वाल न्यूज डेस्क
मोदी सरकार की ये हैं वो 10 मजबूरियां , जिसके चलते वापस लिए तीनों कृषि कानून

नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को विवादित तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया। इस सबके बाद जहां विपक्ष अब मोदी सरकार पर तंज कसता नजर आ रहा है , वहीं नाराज किसानों ने एक बार फिर से मोदी सरकार का आभार प्रकट करते हुए मोदी सरकार जिंदाबाद के नारे लगा दिए हैं । हालांकि इस सबके बीच उन बातों का भी मंथन किया जा रहा है , जिसके चलते मोदी सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा है । तीनों कृषि कानूनों के विरोध में देश के कई राज्यों में लगातार जारी विरोध प्रदर्शन से जहां मोदी सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर बनी हुई थी , वहीं सरकार की छवि भी लगातार धुमिल हो रही थी । 

असल में तीनों कृषि कानूनों के विरोध में देश भर में रैलियां निकाली गईं और किसान महापंचायतों का आयोजन किया गया ।  इस किसान आंदोलन का असर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु तक देखा गया । नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही किसानों का आंदोलन शुरू हो गया था । 

बहरहाल , पीएम मोदी ने अब इन कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है । उन्होंने कहा कि इस महीने के अंत में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की संवैधानिक प्रक्रिया शुरू कर देंगे । संसद का शीतकालीन सत्र 29 नवंबर से शुरू हो रहा है । आइए जानते हैं कि मोदी सरकार के इस फैसले के पीछे की वजह क्या है । 

बता दें कि कि सबसे पहले 2017 में तमिलनाडु के किसान दिल्ली आए और जंतर-मंतर पर कई दिनों तक धरना दिया । इसके अगले ही साल महाराष्ट्र में किसान आंदोलन शुरू हो गया । हजारों किसानों ने भिवंडी से मुंबई तक मार्च किया । नरेंद्र मोदी की सरकार जब तीन कृषि कानून लेकर आई तो देशभर के किसान इसके खिलाफ लामबंद हो गए । पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से आए हजारों किसानों ने दिल्ली की तीन सीमाओं पर पिछले एक साल से डेरा डाल रखा है ।

इस सबके बीच चलिए हम आपको बताते हैं वो 10 बिंदु , जिसके चलते सरकार को बैकफुट पर आने को मजबूर होना पड़ा । 

1- देश की राजनीति में अहम रोल अदा करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं । कृषि कानूनों का विरोध सबसे ज्यादा पंजाब और फिर यूपी में ही हो रहा है , ऐसे में यह कानून भाजपा के लिए खासी परेशानी खड़ी करता नजर आ रहा था । कहा जाता है कि केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही निकलता है, ऐसे में योगी सरकार को दोबारा सत्ता में लाने के लिए किसानों को नाराज बनाए रखना ठीक नहीं था । 

2-  पश्चिमी उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ कृषि कानूनों का विरोध देखते ही देखते पूर्वी उत्तर प्रदेश तक फैल गया था । किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रही भारतीय किसान यूनियन का प्रभाव क्षेत्र पश्चिम उत्तर प्रदेश ही है।  इसके नेता राकेश टिकैत का घर भी पश्चिम उत्तर प्रदेश में ही है । यहां भी भी कई जगह बीजेपी नेताओं को गांवों में प्रवेश करने से रोका गया । कई जगह उनकी गाड़ियों पर पथराव हुआ । भाजपा के बड़े नेता पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाने से कतराने लगे थे । 


3 - यूपी में प्रचंड बहुमत की सरकार चला रही भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम उत्तर प्रदेश में शानदार प्रदर्शन किया था । भाजपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम यूपी की 110 में से 88 सीटें जीत ली थीं । उसे 2012 के चुनाव में 38 सीटें ही मिली थीं । लेकिन किसान आंदोलन को देखते हुए राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान था कि भाजपा को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में घाटा उठाना पड़ेगा ।  

4- इस कृषि कानून के चक्कर में पंजाब में शिरोमणि अकाली दल ने अपनी सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया था । इसके बाद पंजाब में लोग सार्वजनिक तौर पर भाजपा नेताओं का विरोध कर रहे थे । भाजपा नेताओं का काफी विरोध किया गया । यहां तक की स्थानीय निकाय के चुनावों में कई जगह लोगों ने भाजपा नेताओं को चुनाव प्रचार तक नहीं करने दिया । 5- बहरहाल, पंजाब में आने वाले समय में विधानसभा चुनाव हैं । लेकिन पंजाब में कोई भाजपा से समझौता करने तक को तैयार नहीं । इसे लेकर भाजपा चिंतित है । भाजपा के खिलाफ पंजाब के लोगों की नाराजगी को कम करने के लिए केंद्र सरकार ने करतारपुर साहिब कॉरिडोर को खोलने का फैसला किया था । इस सबके बाद कृषि कानूनों को वापस लेना भी भाजपा के पंजाब विधानसभा चुनावों के मद्देनजर एक बड़ा फैसला साबित हो सकता है । 

 

6- किसान आंदोलन के समर्थन में दुनिया की कई मशहूर हस्तियों ने बयान दिए । स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने किसान आंदोलन के समर्थन में ट्वीट किया । उन्होंने कहा कि वो भारत के किसानों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन का समर्थन करती हैं । उन्होंने किसान आंदोलन के समर्थन में एक टूल किट ट्वीट किया था । इसको लेकर सरकार ने मुकदमा दर्ज करा दिया था । यहां तक की बंगलुरु में रहने वाले एक छात्रा को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था ।

7- इसके अलावा अमेरिकी गायक और एक्ट्रेस रिहाना ने भी किसान आंदोलन का समर्थन किया । किसान आंदोलन का समर्थन करने वालों में अभी अमेरिका की उपराष्ट्रपति पद पर आसीन कमला हैरिस भी शामिल थीं । इसके अलावा कृषि कानूनों के विरोध में ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा जैसे देशों भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन आयोजित किए गए थे ।

8- मोदी सरकार के सत्ता में आने के साथ ही विपक्षी दलों की शह पर कई तरह के आंदोलन लगातार सरकार की छवि को धुमिल करने में जुटे रहे । मोदी सरकार के खिलाफ विरोध की शुरूआत पुणे के फिल्म और टीवी संस्थान में निदेशक की नियुक्ति से शुरू हुई । पुणे से शुरू हुआ विरोध प्रदर्शन का यह सिलसिला दिल्ली के कैंपसों तक पहुंचा । दिल्ली के जेएनयू में कथित तौर पर देश विरोधी नारों के सवाल पर छात्रों की गिरफ्तारी हुई । 

9- वहीं सीएए-एनआरसी का विरोध कर जामिया मिल्लिया के छात्रों पर पुलिस ने बर्बर लाठीचार्ज किया । छात्रों पर अराजक तत्वों ने गोलीबारी की। जेएनयू परिसर में घुसकर नकाबबंद लोगों ने छात्रों के साथ मारपीट की और हास्टलों में तोड़फोड़ की । दिल्ली में बीते साल फरवरी में दंगे हुए. इसमें भी कई युवा गिरफ्तार किए गए । नरेंद्र मोदी सरकार का विरोध करने वाले लोगों और कार्यकर्ताओं पर देशद्रोह के मामले दर्ज किए गए । 

10 - खाने के तेल और पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों और सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों के विनिवेशीकरण ने नरेंद्र मोदी सरकार की छवि जनविरोधी सरकार की बनाई है ।  

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