नई दिल्ली । केंद्र की मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में एक और बड़ा फैसला लेते हुए देश में नागरिकता संशोधन कानून को लागू करवा दिया है । राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने गुरुवार को इस विधेयक को मंजूरी दे दी , जिसके बाद यह कानून के रूप में तब्दील हो गया है । देश का एक वर्ग इस कानून को लेकर न तो ज्यादा उत्साहित है न ही ज्यादा नाराज , लेकिन पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में इस कानून को लेकर जमकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं । यहां तक कि असम में हुए विरोध प्रदर्शन में पुलिस की कार्रवाई में तीन लोगों की मौत हो गई है । कई जगहों पर प्रदर्शन हिंसक हो रहे हैं। इन राज्यों ने इस मुद्दे को लेकर कई तरह की अपनी चिंताएं उजागर की हैं। गृहमंत्री अमित शाह इस बिल को लेकर साफ कर चुके हैं कि न तो इससे अल्पसंख्यकों को चिंता करने की जरूरत है न ही किसी ओर को । उन्होंने अपने बयान में कहा कि पूर्वोत्तर के कई राज्य जहां आईएलपी यानी इनर लाइन परमिट लागू है , वहां यह कानून लागू नहीं होगा , बावजूद इसके असम समेत कई राज्यों में हिंसक प्रदर्शन रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर के युवाओं से शांति की अपील की है और कहा कि अपने इस मोदी पर विश्वास रखें । आपकी परंपरा, भाषा, रहन-सहन, संस्कृति और आपके हक पर आंच नहीं आने दूंगा । पूर्वोत्तर राज्यों की कई सेलेब्रिटी भी इस विरोध प्रदर्शन में खड़ी हो गई है ।
तो क्या आप जानते हैं कि आखिर इन लोगों की चिंताएं क्या हैं , आखिर क्यों गृहमंत्री के आश्वासन के बावजूद ये लोग अपनी मांगों को लेकर अड़े हुए हैं और इन लोगों की मांग है क्या , चलिए हम बताते हैं कि आखिर क्या है इन लोगों के विरोध का कारण ।
जानें आखिर क्या सुलग रहा है असम
चलिए सबसे पहले असम की बात करते हैं जहां सबसे ज्यादा हिंसक प्रदर्शन देखने में आ रहे हैं । असल में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के कार्यकर्ता, स्थानीय कलाकार, लेखक, बुद्धिजीवी समाज और विपक्षी दलों के लोग अलग-अलग तरीकों से अपना विरोध जता रहे हैं । इन सभी लोगों का कहना है कि नागरिकता संशोधन कानून असम के लोगों की भावनाओं, हितों और असम समझौते का उल्लंघन है । इस नए कानून के जरिए सरकार NRC से छटे और बांग्लादेश से आए अवैध हिंदू शरणार्थियों को संरक्षण देगी । दूसरे देश के लोगों को उनके राज्य में आने से जहां उनकी भाषा, संस्कृति और परंपरा में दखल और नष्ट होने का खतरा मंडराएगा । वहीं इन लोगों को भारतीय नागरिकता मिलने से आजीविका पर भी संकट खड़ा होगा । असलव में असम में स्थानीय बनाम बाहरी एक बड़ा मुद्दा रहा है । 80 के दशक में भी चले एक आंदोलन के बाद एक समझौता बनाया गया था। तय हुआ कि 24 मार्च 1971 की तारीख तर असम में आए लोगों को वहां का स्थानीय नागरिक माना जाएगा । जबकि नागरिकता संशोधन कानून के तहत 31 दिसंबर 2014 तक भारत में आए लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है । हालांकि सरकार ने इस कानून को छठी अनुसूची में रखा गया है, जिसके तहत इनर लाइन परमिट वाले राज्यों में नागरिकता नहीं मिल सकेगी । असम के कुछ जिले इसके तहत आते हैं, लेकिन कई अभी शेष हैं । यही असम के लोगों की सबसे बड़ी चिंता है ।
पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में विरोध क्यों
इसी क्रम में अगर हम मणिपुर की बहात करें तो मणिपुर अभी इनर लाइन परमिट में नहीं आता था लेकिन स्थानीय लोगों की मांग को देखते हुए उसे आईएलपी में शामिल करने का आश्वासन मिल गया है। इसके बाद मणिपुर पीपल अगेंस्ट कैब (मैनपैक) ने अपने आंदोलन बंद कर दिए, लेकिन कारोबार के सिलसिले में वहां बसने वाले लोगों को बाहरी लोगों द्वारा उनकी आजीविका प्रभावित करने की शंका है । इसी क्रम में त्रिपुरा के कुछ इलाके छठी अनुसूची के तहत हैं लेकिन जनजातीय बहुल इस राज्य में नागरिकता संशोधन कानून का विरोध जारी है । त्रिपुरा ट्राइबल ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (टीटीएडीसी) ने जनजातीय पहचान को लेकर अपनी चिंता जताई है । उनका कहना है कि त्रिपुरा पूर्वोत्तर का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां बांग्लादेश से बड़ी आबादी आने की वजह से यहां की आदिवासी आबादी अल्पसंख्यक हो गई है ।
नगालैंड - मिजोरम की स्थिति
इसी तरह अगर बात नगालैंड और मिरोजम की करें तो यहां भी विरोध के स्वर तो सुनाई दिए हैं । नगालैंड में नगा जनजाति की संस्था नगा होहो इस कानून के खिलाफ है । हालांकि राज्य इनर लाइन परमिट के तहत आता है लेकिन राज्य के लोगों की चिंता है कि उत्तर पूर्व के जनजातीय राज्यों की भौगोलिक स्थिति प्रभावित होगी । उनका कहना है कि बाहरी लोग अब नागा के इलाकों में घुसपैठ करेंगे। इसी क्रम में मिजोरम भी इनर लाइन परमिट के दायरे में आता है लेकिन वहां के लोगों की चिंता है कि मिजोरम में अवैध रूप से आए बांग्लादेशी चकमा बौद्धों को वैधता मिल जाएगी। मेघालय की भी कुछ यही चिंता है । मेघालय भी इनर लाइन परमिट के तहत आता है, लेकिन प्रदेश के शिलॉन्ग में ही दस गुणा दस वर्ग किलोमीटर का एक बड़ा इलाका जो यूरोपीय वार्ड कहलाता है। यह छठी अनुसूची से बाहर है और इस इलाके में भारी आबादी है और कुछ इलाकों में झुग्गियां हैं जहां बांग्लादेश से आए हुए लोगों ने कब्जा कर रखा है।
अरुणाचल प्रदेश के नागरिक भी नाराज
यूं तो अरुणाचल प्रदेश भी इनर लाइन परमिट के तहत आता है लेकिन अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन (आपसू) इस कानून के खिलाफ सड़क पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं । यहां लोग किसी भी सूरत में बौद्ध चकमा समुदाय के लोगों को नागरिकता देने के खिलाफ है । इसी तरह सिक्किम में भी दर्द नजर आ रहा है । फुटबॉल खिलाड़ी बाईचुंग भूटिया की हमरो सिक्किम पार्टी इस कानून के खिलाफ है । भूटिया की चिंता है कि इस कानून के कारण हिमालयी राज्य को मिलने वाले विशेष प्रावधान कमजोर पड़ेंगे, जो संविधान के अनुच्छेद 371 एफ के तहत हासिल हैं । हालांकि राज्य की सरकार कानून के पक्ष में है।