नई दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट का बुधवार को विस्तार हो गया । इसके साथ ही कैबिनेट में व्यापक फेर बदल भी किए गए , जिसमें कई चौंकाने वाले थे तो कई को उनके कामकाज के रिजल्ट का परिणाम कहा गया । बुधवार को मोदी सरकार के 12 मंत्रियों को कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया । रमेश पोखरियाल , डॉक्टर हर्षवर्धन , बाबुल सुप्रीयो , सदानंद गौड़ा समेत कई मंत्रियों को उनके खराब रिपोर्ट कार्ड के चलते अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा । लेकिन केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और रविशंकर प्रसाद के बेहतर कामकाज के बाद उन्हें कैबिनेट से अलग करने पर सबने हैरानी जताई । हालांकि उन्हें पदमुक्त किए जाने के बाद अब पार्टी के ही कुछ वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि पिछले कुछ समय में भाजपा ने अपने दिग्गज नेताओं को खोया है । आने वाले समय में संगठन को फिर से पहले जैसा मजबूत करने के लिए इन दो वरिष्ठ नेताओं की संगठन को बहुत जरूरत थी , इसलिए इन्हें पदमुक्त किया गया है ।
निशंक उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल में अहम जिम्मेदारी देते हुए शिक्षा मंत्री बनाया था । कई किताबों के लेखक और भारतीय संस्कृति के जानकार के रूप में उनसे बेहतर काम की अपेक्षा था , लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नई शिक्षा नीति के अंतिम रूप देने के अलावा उनके पास बताने के लिए कोई उपलब्धि नहीं है। कोरोना के कारण देश की पूरी शिक्षा प्रणाली अस्त-व्यस्त रही। शिक्षा के क्षेत्र में कोई नवाचार लाकर उसे नई दिशा देने की जगह निशंक उससे निपटने के लिए संघर्ष करते दिखे।
कोरोना काल में हर्षवर्धन ने किया ''सरेंडर''
वर्ष 2014 में डॉक्टर हर्षवर्धन को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री की कमान सौंपी गई थी । उन्हें ये जिम्मेदारी पेशे से डाक्टर और पोलियो उन्मूलन अभियान की रूपरेखा तैयार करने में उनके योगदान को ध्यान रखते हुए दी गई थी । हालांकि दो साल बाद ही उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय से हटाकर अर्थ साइंस मंत्रालय में भेज दिया गया और स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी जेपी नड्डा को सौंपी गई। हालांकि एक बार फिर से मोदी सरकार पार्ट 2 में उन्हें फिर से स्वास्थ्य मंत्रालय सौंपा गया । कोरोना जैसे वैश्विक संकट के दौर में वह कुछ खास नहीं कर पाए , जिसके चलते नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वीके पाल और भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार डाक्टर विजय राघवन ने आगे बढ़कर कमान संभाली।
इन मंत्रियों की कुछ ऐसी थी स्थिति
- केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत का इस्तीफा लेने से पहले उन्हें सम्मानजनक विदाई देते हुए कर्नाटक का राज्यपाल बना दिया गया ।
- वर्ष 2019 में जीत के बाद अपनी सादगी के लिए चर्चा में आने के बाद प्रधानमंत्री ने प्रताप चंद्र षड्ंगी को राज्यमंत्री बनाकर उनपर भरोसा भी जताया, लेकिन बीते दो सालों में उनका योगदान शून्य रहा।
- कुछ यही हाल राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो, रतनलाल कटारिया और देवाश्री चौधरी का भी रहा। उनके रिपोर्ट कार्ड में उपलब्धियां न के बराबर नजर आईं, जिसके चलते उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया।
- बात सदानंद गौड़ा की करें तो रसायन और उर्वरक मंत्री के रूप में वह कोरोना काल के दौरान जरूरी दवाओं और उनके लिए जरूरी बल्क ड्रग की सप्लाई सुनिश्चित करने में विफल रहे।
- कुछ ऐसा ही हाल श्रम मंत्रालय को देख रहे संतोष गंगवार का भी रहा । कोरोना काल में श्रमिकों के बड़े पैमाने पर पलायन और उनकी दुश्वारियों को दूर करने के लिए एक पोर्टल बनाने की घोषणा की गई, लेकिन अभी तक यह बनकर तैयार नहीं हो पाया। इसको लेकर
सुप्रीम कोर्ट सरकार की फटकार भी लगा चुकी है।