नई दिल्ली । खगोलीय घटनाओं की जानकारी पाने के इच्छुक लोगों के लिए एक बड़ा घटनाक्रम आगामी 1 दिसंबर को होने जा रहा है । असल में हमारी पृथ्वी को कुछ समय के लिए अपना एक मिनी मून मिल रहा है । यह मिनी मून धरती की ओर बढ़ रहा है। इतना ही नहीं गत 8 नवंबर को इसने पृथ्वी के हिल स्फेयर एरिया में प्रवेश भी कर लिया है । खास बात यह है कि यह मिनी मून 1 दिसंबर के बाद से कुछ हफ्तों तक हमारी पृथ्वी के चक्कर लगाएगा । इसके बाद यह जहां से आया है वहीं वापस चला जाएगा ।
बता दें कि वैज्ञानिकों ने सितंबर माह में एक अनोखी खगोलीय घटना को देखा , जिसमें उन्होंने एक मिनी मून को पृथ्वी की ओर बढ़ता हुआ देखा । इसे पहली बार 17 सितंबर को देखा गया था। वैज्ञानिकों ने इसे पैनोरमिक सर्वे टेलिस्कोप एंड रैपिड रेस्पॉन्स सिस्टम-1 (Panoramic Survey Telescope and Rapid Response System-1) से देखा था । तब यह पाइसेस और सेटस नक्षत्रों के बीच था । ये टेलिस्कोप जिसे लोग PanSTARRS कहते हैं, वह हवाई के माउई में स्थित है । गत 8 नवंबर को यह धरती के हिल स्फेयर एरिया में प्रवेश कर चुका था यानी धरती से 30 लाख किलोमीटर की दूरी पर अभी यह मौजूद है।
वैज्ञानिकों के अनुसार , इसी हिल एरिया में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति काम करने लगती है , ताकि दूसरे ग्रहों की ताकत से कोई वस्तु उनकी तरफ न चली जाए । बहरहाल , आगामी 1 दिसंबर को यह मिनी मून धरती के सबसे नजदीक होगा।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा-जेपीएल के डेविड फार्नोचिया ने बताया कि जब हमने इस वस्तु के आकार और वजन का अध्ययन किया तो ऐसा लगा कि ये हमारा ही बनाया हुआ कोई सैटेलाइट है । यह बेहद छोटा, हल्का और कम घनत्व वाली वस्तु है । ऐसा माना जा रहा है कि 1960 से 70 के बीच नासा द्वारा भेजे गए सर्वेयर लूनर लैंडर के अपोलो रॉकेट का बूस्टर लग रहा है । क्योंकि इसके ऊपर टाइटेनियम डाइऑक्साइड का पेंट लगा है । यह बात उसके स्पेक्ट्रोस्कोपिक एनालिसिस से पता चली ।
वैज्ञानिकों की गणना के अनुसार द सेंटोर 1 दिसंबर को सुबह 3.57 बजे धरती के बगल से निकलेगा , यानी भारतीय समयानुसार दोपहर 2.27 बजे यह धरती के बगल से गुजरेगी । तब इसकी धरती से दूरी करीब 43 हजार किलोमीटर होगी । यानी हमारे जियोसिनक्रोनस ऑर्बिट से मात्र 8000 किलोमीटर दूर से. अमेरिका के लोग इसे अलसुबह रोशनी होने से पहले देख पाएंगे ।
लेकिन दुखद है कि भारत या किसी अन्य देश में यह दिखाई नहीं देगा । इसके बाद यह धरती के पास 74 साल बाद यानी साल 2074 में वापस आएगा ।