नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को एक बड़ा फैसला सुनाते हुए महाराष्ट्र सरकार की ओर से दिए गए मराठा आरक्षण को खारिज कर दिया है । सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मुद्दे पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया । कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि मराठा आरक्षण , आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा का उल्लंघन है , इसलिए इसे ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता। अदालत ने कहा कि यह समानता के अधिकार का हनन है। इसके साथ ही अदालत ने 2018 के राज्य सरकार के कानून को भी खारिज कर दिया है। इसके साथ ही अदालत ने 1992 के इंदिरा साहनी केस में दिए गए फैसले की समीक्षा करने से भी इनकार कर दिया है।
आपको बता दें कि महाराष्ट्र सरकार ने आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा से बाहर जाते हुए मराठा समुदाय को नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का ऐलान किया था। राज्य सरकार की ओर से 2018 में लिए गए इस फैसले के खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थीं । इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की एक पांच सदस्यीय पीठ ने सुनवाई की है ।
जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली बेंच (जिसमें अशोक भूषण के अलावा जस्टिस एल. नागेश्वर राव, एस. अब्दुल नजीर, हेमंत गुप्ता और एस. रवींद्र भट शामिल थे) ने केस की सुनवाई करते हुए कहा कि मराठा आरक्षण देने वाला कानून 50 पर्सेंट की सीमा को तोड़ता है और यह समानता के खिलाफ है। इसके अलावा अदालत ने यह भी कहा कि राज्य सरकार यह बताने में नाकाम रही है कि कैसे मराठा समुदाय सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ा है। इसके साथ ही इंदिरा साहनी केस में 1992 के शीर्ष अदालत के फैसले की समीक्षा से भी कोर्ट ने इनकार कर दिया है।
विदित हो कि वर्ष 1992 में 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा तय की थी। इसी साल मार्च में 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने इस पर सुनवाई पर सहमति जताई थी कि आखिर क्यों कुछ राज्यों में इस सीमा से बाहर जाकर आरक्षण दिया जा सकता है।