Friday, April 26, 2024

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सुप्रीम कोर्ट का फैसला - एक बार बीमा करने के बाद क्लेम देने से मना नहीं कर सकती बीमा कंपनी 

अंग्वाल न्यूज डेस्क
सुप्रीम कोर्ट का फैसला - एक बार बीमा करने के बाद क्लेम देने से मना नहीं कर सकती बीमा कंपनी 

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा है कि कोई बीमा कंपनी एक बार किसी शख्स का बीमा कर देती है तो बाद में उसकी वर्तमान चिकित्सकीय स्थिति का हवाला देकर उसे क्लेम देने से मना नहीं कर सकती। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा, बीमा लेने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि वह अपनी जानकारी के मुताबिक सभी तथ्यों को बीमा कंपनी के समक्ष उजागर करे। यह माना जाता है कि बीमा लेने वाला व्यक्ति प्रस्तावित बीमे से जुड़े सभी तथ्यों और परिस्थितियों को जानता है।

विदित हो कि मनमोहन नंदा नाम के शख्स ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल करते हुए राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के फैसले को चुनौती दी थी। अपनी याचिका में नंदा ने कहा कि उसके अमेरिका में हुए चिकित्सा खर्च के दावे की मांग संबंधी याचिका को एनसीडीआरसी ने खारिज कर दिया है। नंदा ने ओवरसीज मेडिक्लेम बिजनेस एंड हालिडे पालिसी खरीदी थी क्योंकि उनकी अमेरिका यात्रा की योजना थी। सैन फ्रांसिस्को एयर पोर्ट पहुंचने पर उन्हें हार्ट अटैक आया और अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहां उनकी एंजियोप्लास्टी की गई और तीन स्टेंट डाले गए। बाद में उन्होंने इलाज के खर्च का बीमा कंपनी में क्लेम प्रस्तुत किया जिसे कंपनी ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अपीलकर्ता को हाइपरलिपिडेमिया और डायबिटीज थी जिसे बीमा खरीदते समय उजागर नहीं किया गया था।

एनसीडीआरसी ने इस पर कहा था कि मेडिक्लेम पालिसी खरीदते समय नंदा ने यह बात छिपाई थी कि वह स्टैटिन दवाएं लेते हैं । लिहाजा उसने अपने स्वास्थ्य की पूर्ण स्थिति उजागर करने के दायित्व का पालन नहीं किया। 

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बीमित व्यक्ति का बीमा करने के बाद उसकी वर्तमान चिकित्सकीय स्थिति का हवाला देकर उसके क्लेम देने से मना नहीं कर सकती। कोर्ट ने कहा कि यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी द्वारा पालिसी को खारिज करना गैरकानूनी था।


मेडिक्लेम पालिसी खरीदने का मकसद अचानक बीमारी या ऐसी किसी बीमारी से क्षतिपूर्ति हासिल करना है जिसकी कोई संभावना नहीं है और जो विदेश में भी हो सकती है।  अगर बीमित व्यक्ति ऐसी किसी बीमारी का शिकार बनता है जो स्पष्ट रूप से पालिसी से बाहर नहीं है, तो यह बीमा कंपनी का दायित्व है कि वह अपीलकर्ता को पालिसी के तहत हुए खर्चो की क्षतिपूर्ति करे। 

पीठ ने कहा - बीमा लेने वाला व्यक्ति वही चीजें उजागर कर सकता है जो उसे पता हैं, लेकिन तथ्यों को उजागर करने का उसका दायित्व उसकी वास्तविक जानकारी तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें उन तथ्यों को उजागर करना भी शामिल है जो उसे सामान्य तौर पर पता होनी चाहिए।  

साथ ही पीठ ने कहा - एक बार जब बीमित व्यक्ति की चिकित्सकीय स्थिति का आकलन करने के बाद पालिसी जारी कर दी जाती है तो बीमा कंपनी वर्तमान चिकित्सकीय स्थिति का हवाला देते हुए क्लेम खारिज नहीं कर सकती जिसे बीमित व्यक्ति ने प्रस्ताव फार्म में उजागर किया था और जिसकी वजह से वह खास खतरे की स्थिति उत्पन्न हुई जिसके संबंध में बीमित व्यक्ति ने क्लेम प्रस्तुत किया । 

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