देश-दुनिया में स्वर कोकिला के नाम से विख्यात भारत रत्न , पद्मविभूषण , पद्म भूषण से सम्मानित सुमधुर हमारी प्यारी लता दीदी यानी लता दीनानाथ मंगेशकर । भारतीय संगीत की मां समान पूजनीय 90 वर्षीय लता दीदी वर्तमान में मुंबई में रहती हैं। हालांकि उनका जन्म 28 सितंबर 1929 को मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में हुआ था । उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर एक कुशल रंगमंचीय गायक थे , जबकि मां शीवंती मंगेशकर एक गृहणी थीं । उनके पिता ने अपनी इस पुत्री को 5 साल की उम्र से ही संगीत की शिक्षा देना शुरू की । समय बीतता गया और उनकी बहनों आशा, ऊषा और मीना ने भी उनके साथ संगीत की दीक्षा ग्रहण करना शुरू कर दिया । 20 से ज्यादा भाषाओं में संगीतबद्ध हजारों गानों को लता दीदी ने अपने सुर दिए ।
अपने इस कॉलम ''शख्सियत का सफरनामा'' में हम बात करें सुश्री लता दीनानाथ मंगेशकर की । आज हम जिस शख्सियत की बात कर रहें हैं आज भले ही दुनिया उनके सुरों के आगे नतमस्तक हो जाती है , लेकिन क्या आपको बता है कि उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक अभिनेत्री के रूप में की थी । ...जी हां....अपने शुरुआती सफरनामें में फिल्मों में गीत गाने से पहले उन्होंने कुछ फिल्मों में अभिनय किया ।
तो चलिए उनके इस सफरनामें की शुरुआत , उनके बचपन से करते हैं , जो काफी परेशानी भरा था ।
संघर्ष भरा रहा बचपन
भारत रत्न से सम्मानित जिन लता मंगेशकर को हम आज सफलता की बुलंदियों पर पाते हैं , असल में इसके पीछे कितना संघर्ष छिपा है , वो आज आप इस आलेख के जरिए जान पाएंगे । असल में लता दीदी के पिता दीनानाथ मंगेशकर रंगमच के गायक थे , लेकिन उनकी प्रतिभा के अनुसार उनकी आर्थिक सेहत अच्छी नहीं थी । अभी वह मात्र 13 साल की ही थी कि उनके पिता का साया उनके सिर से हट गया । इसके बाद नवयुग चित्रपट फिल्म कंपनी के मालिक और उनके पिता के दोस्त मास्टर विनायक (विनायक दामोदर कर्नाटकी) ने इनके परिवार को संभाला । उसके बाद उन्होंने लता दीदी को निखारने में मदद की ।
5 साल की उम्र में किया नाटक में काम
असल में लता मंगेशकर के पास ईश्वर की दी गई और अपनी साधना से साधी गई सुरीली आवाज तो थी ही साथ में वह किसी भी चीज को बहुत जल्दी सीखने में बचपन से ही बहुत निपुण थीं । उनकी इन्हीं विशेषताओं के कारण उनकी प्रतिभा का सम्मान बचपन से होना शुरू हो गया था । महज 5 साील की उम्र में उन्हें पहली बार एक नाटक में अभिनय करने का अवसर मिला।
शुरुआत अभिनय से लेकिन मन संगीत में
अपने छोटी आयु में ही लता मंगेशकर ने नाटकों में काम करना शुरू कर दिया था , लेकिन बचपन से ही उनका मन पिता द्वारा सिखाई गई दीक्षा में लगता था । उन्हें रंगमंच के बजाए संगीत में ज्यादा दिचस्पी रहती थी। पिता की मृत्यु के बाद मास्टर विनायक (विनायक दामोदर कर्नाटकी) ने उनकी प्रतिभा को निखारने का काम किया ।
छोटी आयु से ही शुरू हुआ संघर्ष भरा जीवन
भले ही आज लता दीदी ने सफलता ही हर उस बुलंदी को शिद्दत से पा लिया हो , लेकिन उनके संघर्ष की शुरुआत उनके पिता की मृत्यु के बाद से ही हो गई । उन्होंने अपनी संगीत साधना को ज्यादा समय देना शुरू कर दिया । संगीत की अच्छी समझ होने के बावजूद कई फिल्मकारों ने उन्हें शुरुआती दौर में इसलिए काम नहीं दिया क्योंकि वह लता दीदी की आवाज को बहुत पतला बताते थे । हालांकि इसके बाद उनकी आवाज की तुलना उस दौरान की महान गायिका नूरजहाँ के साथ होने लगी , जिसके बाद लता दीदी ने अपनी लगन और प्रतिभा के बल पर अपने लिए फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बना ही ली ।
...यूं छूने लगीं सफलता की सीढ़ी
एक समय अपनी पतली आवाज के लिए जिन संगीतकारों और फिल्म निर्देशकों ने लता दीदी को गाने देने से मना कर दिया था। लेकिन उनकी प्रतिभा को पहचान मिली सन् 1947 में आई फिल्म “आपकी सेवा में” से । उन्हें इस फिल्म का एक गीत गाने का मौका मिला। इस गीत के बाद लता दीदी को फिल्म जगत में एक पहचान मिल गई । एक समय आया कि वह लता दीदी से मुलाकात करने के लिए तरसने लगे । उन्हें एक के बाद एक कई गीत गाने का मौका मिला। चलिए इस दौरान उनके एक ऐसे गीत के बारे में बताते हैं, जो उनके लिए मील का पत्थर साबित हुआ । यह गीत था 1949 में गाया गीत “आएगा आने वाला”। अब उनके प्रसंशकों की संख्या में तेजी से इजाफा होने लगा था।
देश के सुप्रसिद्ध सभी संगीतकारों के साथ गाया
इस गीत के बाद लता दीदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा । उन्होंने उस समय के सभी प्रसिद्ध संगीतकारों के साथ काम किया। अनिल बिस्वास, सलिल चौधरी, शंकर जयकिशन, एस. डी. बर्मन, आर. डी. बर्मन, नौशाद, मदनमोहन, सी. रामचंद्र इत्यादि सभी संगीतकारों ने आपकी प्रतिभा का लोहा माना।
शुरुआती चरण में कुछ प्रसिद्ध फिल्में
अब लता दीदी की किस्मत चमक उठी थी । वह जिस फिल्म में गाना गाती , न केवल वह गाना बल्कि गीतों के चलते फिल्म भी हिट हो जाती थी । उन्होंने दो आँखें बारह हाथ, दो बीघा ज़मीन, मदर इंडिया, मुग़ल ए आज़म, आदि महान फ़िल्मों में गाने गाये है। इसके साथ ही फिल्म “महल”, “बरसात”, “एक थी लड़की”, “बडी़ बहन” आदि फ़िल्मों में अपनी आवाज़ के जादू से इन फ़िल्मों की लोकप्रियता में चार चाँद लगाए।
...इन गीतों ने शीर्ष पर खड़ा कर दिया
इसके बाद 50 के दशक में उन्होंने कुछ ऐसे गीत गाए, जिसके बाद वह इंडस्ट्री की शीर्ष गायिकाओं में शुमार हो गईं । उस दौरान के उनके कुछ बहुत चर्चित गाने कुछ इस तरह हैं...
-- “ओ सजना बरखा बहार आई” (परख-1960)
- “आजा रे परदेसी” (मधुमती-1958)
- “इतना ना मुझसे तू प्यार बढा़, ” (छाया- 1961)
- “अल्ला तेरो नाम , ईश्वर तेरो नाम ”, (हम दोनो-1961)
- “एहसान तेरा होगा मुझ पर, दिल चाहता है वो कहने दो...”, (जंगली-1961)
- “ये समां , समां है ये प्यार का किसी के इंतजार का” (जब जब फूल खिले-1965)
छ दशक में 20 भाषाओं के 30 हजार गाने
स्वर कोकिला और भारत रत्न लता मंगेशकर भारत की सबसे लोकप्रिय और आदरणीय गायिका हैं जिनका छ: दशकों का कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। उन्होंने अपने करियर में 20 भाषाओं में 30,000 गाने गाए । लता जी आज भी अकेली हैं, उन्होंने स्वयं को पूर्णत: संगीत को समर्पित कर रखा है। लेकिन उनकी पहचान भारतीय सिनेमा में एक पार्श्वगायक के रूप में रही है। अपनी बहन आशा भोंसले के साथ लता जी का फ़िल्मी गायन में सबसे बड़ा योगदान रहा है। लता दीदी को मिले कुछ सम्मान
- फ़िल्म फेयर पुरस्कार (1958, 1962, 1965, 1969, 1993 और 1994)
- राष्ट्रीय पुरस्कार (1972, 1975 और 1990)
- महाराष्ट्र सरकार पुरस्कार (1966 और 1967)
- सन 1969 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
- सन 1989 में उन्हें फ़िल्म जगत का सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार’ दिया गया।
- सन 1993 में फ़िल्म फेयर के 'लाइफ टाइम अचीवमेंट पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
- सन 1996 में स्क्रीन के 'लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
- सन 1997 में 'राजीव गांधी पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
- सन 1999 में पद्मविभूषण, एन.टी.आर. और ज़ी सिने के 'लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
- सन 2000 में आई. आई. ए. एफ.(आइफ़ा) के 'लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।
- सन 2001 में स्टारडस्ट के 'लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार', नूरजहाँ पुरस्कार, महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- सन 2001 में भारत सरकार ने आपकी उपलब्धियों को सम्मान देते हुए देश के सर्वोच्च पुरस्कार “भारत रत्न” से आपको विभूषित किया।