नई दिल्ली । राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर DDCA के दिवंगत अध्यक्ष अरुण जेटली की प्रतिमा लगाने के फैसले से दिग्गज क्रिकेटर रहे बिशन सिंह बेदी नाराज हो गए हैं । इतना ही नहीं उन्होंने उनका नाम दर्शक दीर्घा से हटाने तक के लिए कह डाला है । हाल में उन्होंने इस फैसले का विरोध करते हुए डीडीसीए से भी इस्तीफा दे दिया था । ताजा विवाद पर उनका कहना है कि मेरे जमीर ने जो कहा, मैंने कर दिया । एक क्रिकेट ग्राउंड में एक नेता का बुत बनाना शोभा नहीं देता है । यह बात मेरे जेहन में उतर नहीं रही है । मैंने उन्हें बुत लगाने से रोक नहीं रहा हूं , मेरा कहना है कि मेरा नाम बस वहां से हटा दीजिए ।' उन्होंने अपने पत्र में कहा -आपके आसपास घिरे लोग आपको नहीं बताएंगे कि लॉर्ड्स पर डब्ल्यूजी ग्रेस, ओवल पर सर जैक हॉब्स, सिडनी क्रिकेट ग्राउंड पर सर डॉन ब्रैडमैन, बारबाडोस में सर गैरी सोबर्स और मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर शेन वॉर्न की प्रतिमाएं लगी हैं ।'
जेटली की छट फुट की प्रतिमा लगेगी कोटला मैदान पर
विदित हो कि हाल में डीडीसीए ने फैसला लिया कि वह फिरोजशाह कोटला मैदान पर पूर्व केंद्रीय मंत्री और डीडीसीए के अध्यक्ष रहे दिवंगत अरुण जेटली की प्रतिमा लगाएंगे । जेटली 1999 से 2013 के बीच 14 साल तक डीडीसीए अध्यक्ष रहे । क्रिकेट संघ उनकी याद में कोटला पर छह फुट की प्रतिमा लगाने की सोच रहा है ।
बेदी ने लगाए आरोप
लेकिन इस फैसले से नाराज पूर्व क्रिकेटर बिशन सिंह बेदी ने भाई भतीजावाद और ‘क्रिकेटरों से ऊपर प्रशासकों को रखने’ का आरोप लगाते हुए संघ की सदस्यता भी छोड़ दी । उन्होंने अरुण जेटली के बेटे और डीडीसीए के अध्यक्ष रोहन जेटली को लिखे पत्र में कहा, ‘मैं काफी सहनशील इंसान हूं, लेकिन अब मेरे सब्र का बांध टूट रहा है । डीडीसीए ने मेरे सब्र की परीक्षा ली है और मुझे यह कठोर कदम उठाने के लिए मजबूर किया ।’
मैं कभी नहीं था जेटली का मुरीद
बेदी ने अपने पत्र में लिखा - मैं कभी जेटली की कार्यशैली के मुरीद नहीं रहा और हमेशा उन फैसलों का विरोध किया, जो उन्हें सही नहीं लगे । उन्होंने कहा,‘ डीडीसीए का कामकाज चलाने के लिए जिस तरह से वह लोगों को चुनते थे, उसे लेकर मेरा ऐतराज सभी को पता है । मैं उनके घर हुई एक बैठक को छोड़कर चला गया था क्योंकि वह बैठक में बदतमीजी कर रहे एक शख्स को नहीं टोक रहे थे । सम्मान के साथ जिम्मेदारी भी आती हैअपने पत्र में बेदी ने लिखा - तो अध्यक्ष महोदय मैं आपसे मेरा नाम उस स्टैंड से हटाने का अनुरोध कर रहा हूं, जो मेरे नाम पर है और यह तुरंत प्रभाव से किया जाए । मैं डीडीसीए की सदस्यता भी छोड़ रहा हूं । उन्होंने कहा कि मैंने काफी सोच विचारकर यह फैसला लिया है । मैं सम्मान का अपमान करने वालों में से नहीं हूं , लेकिन हमें पता है कि सम्मान के साथ जिम्मेदारी भी आती है । मैं यह सुनिश्चित करने के लिए सम्मान वापस कर रहा हूं कि जिन मूल्यों के साथ मैंने क्रिकेट खेला है, वे मेरे संन्यास लेने के चार दशक बाद भी जस के तस हैं ।’शायद पुराने ख्यालों का हूंबेदी ने कहा, ‘मैं इस मामले में बहुत सख्त हूं । शायद काफी पुराने ख्याल का । लेकिन मैं भारतीय क्रिकेटर होने पर इतना फख्र रखता हूं कि चापलूसों से भरे अरुण जेटली के दरबार में हाजिरी लगाना जरूरी नहीं समझता था ।’ फिरोजशाह कोटला मैदान का नाम आनन-फानन में दिवंगत अरुण जेटली के नाम पर रख दिया गया, जो गलत था । लेकिन मुझे लगा कि कभी तो सदबुद्धि आएगी , लेकिन मैं गलत था. अब मैंने सुना कि कोटला पर अरुण जेटली की मूर्ति लगा रहे हैं । मैं इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता ।’संसद में संजोए उनकी यादेंउन्होंने कहा कि दिवंगत जेटली मूल रूप से नेता थे और संसद को उनकी यादों को संजोना चाहिए । उन्होंने कहा, नाकामी का जश्न स्मृति चिह्नों और पुतलों से नहीं मनाते , उन्हें भूल जाना होता है ।खेल के मैदान पर खेल के रोलमॉडलवह बोले - खेल के मैदान पर खेलों से जुड़े रोल मॉडल रहने चाहिए । प्रशासकों की जगह शीशे के उनके केबिन में ही है । डीडीसीए यह वैश्विक संस्कृति को नहीं समझता तो मैं इससे परे रहना ही ठीक समझता हूं। मैं ऐसे स्टेडियम का हिस्सा नहीं रहना चाहता, जिसकी प्राथमिकताएं ही गलत हों । जहां प्रशासकों को क्रिकेटरों से ऊपर रखा जाता हो ।