देहरादून/नई दिल्ली । उत्तराखंड विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी में मची उठापटक को लेकर सोमवार पूरे दिन बयानबाजियों का दौर जारी रहा । हालांकि इस हो हल्ले के सूत्रधार हरक सिंह रावत पूरे दिन कई बार भावुक नजर आए । मीडिया के सामने वह रो पड़े , बोले - अगर यमराज कहें कि मैं भाजपा से बात कर लूं तो मैं यही कहूंगा कि मुझे मौत दे दो । असल में हरक सिंह रावत को भाजपा ने रविवार रात पार्टी से निकाल कर 6 साल के लिए बर्खास्त कर दिया है , जिसके बाद वह कांग्रेस में शामिल होने की जुगत लगाने नजर आ रहे हैं । खबरें हैं कि वह टिकटों के लिए कांग्रेस से मोलभाव कर रहे हैं ।
विदित हो कि हरक सिंह रावत को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया । इतना ही नहीं उन्हें भाजपा ने पार्टी से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया है । उनपर आरोप लगाए गए हैं कि वह अपनी पुत्रवधु , एक समर्थक और अपने लिए टिकट मांगते हुए पार्टी पर दबाव बना रहे थे । लेकिन पार्टी ने दबाव में न आते हुए उन्हें ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया ।
हालांकि हरक सिंह रावत भाजपा के इन आरोपों को खारिज करते रहे । सुबह से लेकर शाम तक वह कई बार मीडिया के कैमरे के सामने आंसू साफ करते नजर आए । उन्होंने भाजपा को लेकर जो बयान दिए , उससे तो साफ हो गया है कि भाजपा उनपर किसी तरह का कोई रहम नहीं करने वाली । इसलिए अब वह कांग्रेस में फिर से अपने लिए मौका खौज रहे हैं ।
असल में हरक सिंह के रोने का एक कारण यह भी हो सकता है कि मार्च 2016 को 9 कांग्रेस विधायकों के साथ हरीश रावत की सरकार से बगावत करके हरक सिंह रावत जिस कांग्रेस में गए थे , अब उन्हें वहां से भी बाहर कर दिया गया है । उनकी बगावत के चलते हरीश रावत सरकार गिर गई थी और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा था , लेकिन हरीश रावत ने सुप्रीम कोर्ट की लड़ाई से फिर कुर्सी तो पाई, लेकिन सरकार ज्यादा दिन नही चली । ऐसे में हरदा कैसे उस घटना को भूलकर हरक सिंह रावत को फिर अपने साथ खड़ा कर सकते हैं ।
हालांकि सार्वजनिक मंच से हरीश रावत ने कहा कि हरक सिंह रावत ने लोकतंत्र के खिलाफ काम किया है, उसके लिए प्रायश्चित करें । अभी तक उन्होंने हरक सिंह के नाम पर हामी नहीं भरी है और न ही इनकार किया है । उन्होंने पार्टी पर हरक सिंह रावत की एंट्री के फैसले की जिम्मेदारी डाल दी है ।
हालांकि हरक सिंह के दल बदलने का पुराना इतिहास है । उन्होंने छात्र राजनीति के बाद अपने सियासी सफर का पहला चुनाव भाजपा के टिकट पर लड़ा ।
- इसके बाद उस समय जब उत्तराखंड , यूपी का ही हिस्सा था , वर्ष 1996 में हरक सिंह रावत ने बसपा का दामन थाम लिया ।
- मायावती के बेहद करीबी रहे हरक सिंह ने 1998 में कांग्रेस का दामन थाम लिया ।
- उत्तराखंड राज्य बनने पर कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे ।
- साल 2007 में कांग्रेस की ओर से नेता विपक्ष रहे ।
- 2016 में कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में गए ।