रुद्रप्रयाग । देश-दुनिया को झकझोर देने वाली 2013 की केदारनाथ आपदा का जख्म कई परिवारों के तन-मन पर आज तक नजर आते हैं। लेकिन केदार घाटी में व्यापक तबाही मचाने वाले चोराबाड़ी ताल में इन 6 सालों में बड़ा बदलाव नजर आया है । जानकारी के मुताबिक यह ताल एक बार फिर से अपने पुराने स्वरूप में आ रहा है। एक बार फिर से यह ताल पानी से लबालब हो गया है । इस ताल के चारों तरफ ग्लेशियर है, जो टूट कर इस ताल में गिर रहे हैं और पिघल रहे हैं। इस सब के चलते भूस्खलन हो रहा है । इस ताल की मौजूदा स्थिति का जायजा लेने के लिए जल्द भू-वैज्ञानिक क्षेत्र का जायजा लेंगे । इतना ही नहीं जिला आपदा प्रबंधन की टीम भी चोराबाड़ी पहुंचकर वहां के हालातों का निरीक्षण कर रिपोर्ट जिलाधिकारी को सौंपेगी।
जिले के जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल का कहना है कि चोराबाड़ी ताल व पूरे क्षेत्र का भू-वैज्ञानिकों के माध्यम से अध्ययन किया जाएगा। इस बारे में वाडिया संस्थान के विशेषज्ञों से बातचीत हो रही है। साथ ही सिक्स सिग्मा के लोगों से भी वहां के बारे में पूरी जानकारी ली गई है।
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वर्ष 2013 की 16/17 जून की रात केदारनाथ में तबाही का अहम कारण बनी चोराबाड़ी ताल एक बार फिर से सक्रिय नजर आ रहा है । ताल के खुले मैदान में 2013 की घटना के बाद एक बार फिर से भरपूर पानी जमा हो गया है , जिसके चारों और काफी मोटी बर्फ की चादरें जमा हैं।
बता दें कि गत 15 जून को सिक्स सिग्मा के सीईओ डा. प्रदीप भारद्धाज के नेतृत्व में केदारनाथ से चोराबाड़ी पहुंची उनकी टीम ने पूरे क्षेत्र का जायजा लिया। डा. भारद्वाज ने बताया कि चोराबाड़ी में जगह-जगह पर भूस्खलन हो रहा है। साथ ही ग्लेशियर भी तेजी से चटक रहा है। आपदा में ताल का मुहाना (स्रोत) फूटने से जो मैदान बना था, वह इन दिनों पानी से लबालब भरा हुआ है। जमा पानी की गहराई करीब चार मीटर तक है। इसके आसपास बड़े बोल्डर और कई जगहों पर जमीन दरकने से पानी का बहाव भी कम है, जिससे निचले हिस्से को खतरा नहीं है।
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वहीं भू विज्ञान के जानकार कहते हैं कि चोराबाड़ी ताल से केदारपुरी व मंदिर क्षेत्र को आने वाले कई दशकों तक किसी भी प्रकार के नुकसान की कोई संभावना नहीं है, लेकिन फोटो में जिस तरह से ताल के खुले हिस्से में पानी जमा दिख रहा है, उसका स्थलीय निरीक्षण व भूगर्भीय अध्ययन जरूरी है। जल्द यहां पहुंचकर इस पूरे क्षेत्र का सर्वेक्षण कर हालातों का जायजा लेंगे। भावी संभावनाओं को लेकर भी चोराबाड़ी ताल व ग्लेशियर का अध्ययन किया जाएगा।