नैनीताल । उत्तराखंड में पंचायत चुनाव में देरी को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सरकार व राज्य निर्वाचन आयोग को फटकार लगाई है । हाईकोर्ट ने सरकार द्वारा पंचायतों में बैठाए प्रशासकों के नीतिगत फैसलों पर रोक लगा दी है । इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि प्रशासक काम तो करेंगे , मगर कोई भी नीतिगत निर्णय नहीं ले सकते। इसके साथ ही कोर्ट ने रावत सरकार से बुधवार यानि 31 जुलाई तक शपथ पत्र के साथ जवाब दाखिल करने को कहा है।
बता दें कि हाईकोर्ट में शुक्रवार को इस याचिका पर सुनवाई की । याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार पंचायत चुनाव कराने में नाकाम रही है । गूलरभोज ऊधम सिंह नगर निवासी नईम अहमद की ओर से हाईकोर्ट में दाखिल इस जनहित याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार संवैधानिक कर्तव्य निभाने में नाकाम रही है। याचिका में मांग की गई है कि राज्य में संविधान का अनुछेद 356 के तहत सरकार को हटाकर राष्ट्रपति शासन लागू किया जाए।
कोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कहा कि 4 महीनों के भीतर राज्य में पंचायत चुनाव करवा दिया जाएगा। लेकिन कोर्ट सरकार के इस बात से संतुष्ट नहीं हुई । कोर्ट ने राज्य सरकार और निर्वाचन आयोग को फटकार लगाते हुए कहा कि जब 15 जुलाई को पंचायतों का कार्यकाल खत्म हो गया था , तो संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए राज्य निर्वाचन आयोग ने कोर्ट में याचिका दाखिल क्यों नहीं की।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने टिप्पणी की कि चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है पर संवैधानिक दायित्व निभाने पर चुप रहा। राज्य में 15 जुलाई को ग्राम पंचायतों का कार्यकाल खत्म हो गया है। संविधान व सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार कार्यकाल पूरा होने तक चुनाव कराने अनिवार्य हैं, मगर सरकार ने चुनाव कराने के बजाए राज्य में 6 जुलाई को ग्राम पंचायतों में प्रशासकों की नियुक्ति कर दी ।