देहरादून । उत्तराखंड के भूजल के अनावश्यक दोहन को रोकने के लिए नई जल नीति तैयार की गई है । इसके चलते अब प्रदेश में प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण अनिवार्य किया जा रहा है। भूजल के हिसाब से अतिसंवेदनशील जिलों पर विशेष फोकस रखा गया है। नई नीति के तहत अब से राज्य के प्राकृतिक जल स्रोतों की जहां मैपिंग की जाएगी , वहीं इनके संरक्षण के लिए अनिवार्य रूप से उपाय किए जाएंगे। जानकारी के मुताबिक , मंत्रिमंडल की आगामी बैठक में इसे पेश किया जाएगा । साथ ही इस नीति में यथासंभव लघु जल विद्युत परियोजनाओं के विकास का आग्रह किया गया है। करीब 2700 मेगावट की जल विद्युत क्षमता को देखते हुए राज्य में बड़ी योजनाओं पर अधिक फोकस रहा।
मिली जानकारी के मुताबिक , नई जल नीति में रेन वाटर हार्वेस्टिंग पर खासा जोर दिए जाने के प्रावधान रखे गए हैं। इतना ही नहीं चाल खाल, नदियों के पुर्नोद्धार, जल संचय की नई संरचनाओं पर खास ध्यान दिया जाएगा। सरकार का मानना है कि प्रदेश की जल मांग की पूर्ति करने में बारिश सक्षम है। इस पानी का उपयोग न करना अक्षम्य है। नीति में इस काम को न करने पर दंडात्मक कदम उठाने का भी प्रावधान है। वहीं, प्राकृतिक जल स्रोत, भूजल, बारिश, नदियां आदि की मैपिंग के लिए नेशनल हाइड्रोलॉजी प्रोजेक्ट, आईटीआई सहित अन्य संस्थाओं का सहयोग लिया जाएगा।
जल नीति में जल उपयोग को यूजर चार्ज के दायरे में लाने का सुझाव है। यानी जितने और जिस तरह से पानी का उपयोग, उतना ही शुल्क भी होगा। यह शुल्क कितना होगा और किस तरह का होगा, इसकी नियमावली तैयार होगी। जल के महत्व और आधुनिक तकनीकों की जानकारी पाठ्यक्रमों में शामिल की जाए ।
इस दौरान जल नीति के प्रमुख मुद्दों की बात करें तो इसमें पानी की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रीत तरने के साथ ही , वाटर ऑडिट और जुर्माने का भी प्रावधान रखा गया है । जल नीति में पानी की गुणवत्ता को प्रमुखता दी गई है। उत्तराखंड वाटर रेग्युलेटरी कमीशन को नए सिरे से गठित करने और इस संस्था को प्रभावी बनाने की सिफारिश की गई है। इसी क्रम में जल नीति में पानी के बेजा इस्तेमाल को रोकने के लिए भारी जुर्माने जैसी व्यवस्था का भी सुझाव है। उद्योगों के लिए पानी का शोधन कर ही उसे नदी नालों में छोड़ने का अनिवार्य प्रावधान किया गया है।