देहरादून । आरटीआई कार्यकर्ता सीमा भट्ट की शिकायत पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और सीबआई ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव उत्पल कुमार को उत्तराखंड शासन में अपर सचिव वित्त अरुणेंद्र सिंह चौहान के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा है। उनके खिलाफ आय से अधिक सम्पति का मामला सामने आया है । आरोप है कि अरुणेंद्र सिंह चौहान पर आय से अधिक करीब 100 करोड़ की संपत्ति अर्जित करने का आरोप है । राज्य के शर्मानाक बाद यह भी है कि जिन अरुणेंद्र सिंह के खिलाफ कार्रवाई के लिए राष्ट्रपति की ओर से पत्र लिखा गया है, वह अधिकारी राज्य में स्वराज एवं भ्रष्टाचार निवारण प्रकोष्ठ के में भी अपर सचिव पद पर तैनात हैं।
बता दें कि देहरादून निवासी और RTI कार्यकर्ता सीमा भट्ट ने उत्तराखंड शासन में अपर सचिव वित्त अरुणेंद्र सिंह चौहान पर आय से अधिक संपत्ति के आरोप लगाए थे । हालांकि उनकी शिकायत पर राज्य सरकार ने कोई संज्ञान नही लिया । इस पर सीमा ने अपर सचिव वित्त के खिलाफ अकूत सम्पति की शिकायत CBI महानिदेशक , नई दिल्ली के साथ ही राष्ट्रपति भवन और लोक शिकायत मंत्रालय भारत सरकार में की ।
इस पर संज्ञान लेते हुए राष्ट्रपति और सीबीआई ने मुख्य सचिव उत्तराखंड उत्पल कुमार को कार्रवाई के लिए पत्र भेजा है । मुख्य सचिव के निर्देश पर अपर सचिव कार्मिक राधा रतूड़ी ने मामले का संज्ञान लिया है । इस संबंध में प्रभारी सचिव कार्मिक भूपाल सिंह मनराल ने अपर सचिव वित्त अमित नेगी को अग्रिम कार्रवाई के लिए पत्र जारी किया है।
सीमा भट्ट का आरोप है कि जो अधिकारी उत्तराखंड कोषागार में अपर निदेशक के पद पर कार्यरत है, वह शासन में अपर सचिव वित्त कैसे हो सकता है। सीमा का आरोप है कि दोनों पदों पर एक साथ नियुक्त होना नियमविरुद्ध है। इतना ही नहीं उन पर लगातार कई मामलों में अनियमितता और भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे, जिनकी जांच चल रही है।
विदित हो कि अरुणेंद्र सिंह चौहान इस समय उत्तराखंड शासन में अपर सचिव हैं। इसके साथ ही वह कोषागार निदेशालय में बतौर अपर निदेशक के पद पर भी कार्यरत हैं । उत्तराखंड शासन में उनकी नियुक्ति और वरिष्ठता लंबे समय से विवादों में है । अरुणेंद्र चौहान एक मात्र ऐसे अधिकारी हैं, जिनकी वरिष्ठता उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश दोनों ही राज्य में चल रही है ।
11 जनवरी 2019 को राज्यपाल के निर्देश पर सचिव आरके सुधांशु ने चौहान को यूपी के लिए कार्यमुक्त करने के लिए आदेशित दिया था, लेकिन ऊंची राजनीतिक पहुंच और शासन में बैठे आकाओं के चलते इस आदेश को पर कोई भी कार्रवाई नहीं हुई।