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देहरादून, टीम अंग्वाल, 13 मई
राज्य निर्माण के लगभग 15 सालों बाद भी उत्तराखंड अपने पांव परखड़ा नहीं हो पा रहा है। प्राकृतिक चुनौतियों और राजनीतिक उथपथल से जूझ रहा यहराज्य आर्थिक रूप से बेहद कमज़ोर है। अगर पर्यटन को छोड़ दिया जाए, तो प्रदेश में ऐसा कोई व्यवसाय, रोजगारके लिहाज से कामयाब नज़र नहीं आता। मैदानी इलाकों में तो फिर भी युवाओं के लिएरोटी कमाने के इक्का दुक्का साधन नज़र आते हैं, लेकिनपहाड़ों में हालात बेहद खराब हैं। पल-पल रंग बदलता मौसम और घड़ी-घड़ी आती प्राकृतिकविपदाओं से दो-चार होते ग्रामीण न चाह कर भी पलायन करने को मजबूर हैं। ऊंचाई वालेइलाकों में ऐसे कई गांव जो सर्दियों के दिनों में विरान और सुनसान हो जाते हैं।पहाड़ी प्रदेश की इस विकट स्थिती का जिम्मेदार सरकारी नुमाईंदों को कहें तो गलतनहीं होगा।
भ्रष्टाचार, लापरवाही और संवाद की कमी के चलतेराजनेता अपने विधानसभा क्षेत्रों के भौगोलिक और सामरिक परिस्थितियों से रूबरू हीनहीं हो पाते। अधिकारी वर्ग से उन्हें जो जानकारी हासिल भी होती है वही भी आधीअधूरी होती है। जिसका खामियाजा आज राज्य का हर वो शख्स भुगत रहा है। जिसने अलगराज्य के निर्माण की मांग को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था।
राज्य को विकास की पटरी पर आगे बढ़ानेके लिए प्रदेश सरकार ने कई योजनाएं चलाईं। धार्मिक स्थलों के साथ साथ साहसिकपर्यटन को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है। ताकी ज्यादा से ज्यादा सैलानियों कोउत्तराखंड की ओर आकर्षित किया जा सके। बावजूद इसके राज्य आज भी विकास की पटरी परआगे नहीं दौड़ पा रहा है। ऐसे में जरूरत है कि हम राज्य निर्माण के लिए उठाए जारहे अपने प्रयासों को सही दिशा में आगे बढ़ाएं, ताकीउत्तराखंड के विकास को नई दिशा मिल सके।