उत्तराखंड सरकार के लिए पर्वतीय इलाकों से लगातार जारी पलायन हमेशा सेही एक चिंता का विषय रहा है। कई सरकारें आईं और गईं लेकिन पर्वतीय इलाकों से पलायनरोकने की ठोस योजना अब न तो बनाई गई और जो बनी भी उन पर अमल नहीं हुआ। ऐसे में यहकहा जाता सकता है कि देवभूमि के पर्वतीय इलाकों से पलायन रोकने के लिए सरकार कीतरफ से सिर्फ “कोरी” कोशिशें हुईंहैं। पलायन से प्रदेश में बढ़ रहे असंतुलन को रोकने के लिए मुख्यमंत्री हरीश रावतने पहल की है। सरकार ने पहाड़ी क्षेत्र में शिक्षा और स्वास्थ्य की बेहतर सुविधा,रोजगार के अवसर, मूलभूत सुविधाओं के विस्तार को अपनी प्राथमिकता में शुमार करने कीबात कही है।
मुख्यमंत्री की इस पहल से पवर्तीय इलाकों में रहने वाले लोगों कीउम्मीदें एक बार फिर जग गई है। असल में सूबे के पर्वतीय क्षेत्र राज्य गठन के 15साल बाद भी उन दुश्वारियों से पार नहीं पा सका है, जो राज्य बनने सेपहले थीं। अलबत्ता स्थिति और भी खराब और नाजुक हुई, इस बात से कहीं न कहीं खुदसरकार भी इत्तेफाक रखती है। ताजा सरकारी आंकड़ों पर नजर डाले तो पिछले 15 साल मेंराज्य में पलायन के चलते 2.5 लाख से अधिक गांव सूने हो गए हैं। पर्वतीय इलाके केअधिकतर गांव सूने होने के कारण बड़े पैमाने पर खेत बंजर भी हो गए हैं। इतना हीनहीं अगर बात स्वास्थ्य की करें तो पर्वतीय इलाकों में रहने वाले लोगों को हल्कीसर्दी-जुखाम की दवाई लेने के लिए भी शहरों की ओर रूख करना पड़ता है। रोजगार केक्षेत्र में
भी पर्वतीय इलाके काफी पिछड़े हुए हैं। जाहिर है पर्वतीय इलाकों मेंबदहाली और सुविधाओं की कमी के चलते यहां विकास उस गति से नहीं हो रहा, जैसा मैदानीइलाकों का हो रहा है। हालांकि जैसे मैंने पहले भी कहा पिछले 15 सालों में सरकारोंने पलायन पर चिंता जताने के साथ ही इस पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाने की बातकही। मगर धरातलीय स्थिति किसी से छिपी नहीं है। अब सरकार ने पलायन थामने के लिएप्रतिबद्धता दिखाई है। इसका उदाहरण देखने को मिला राज्यपाल के बजट अभिभाषण में,जिसमें उन्होंने पर्वतीय इलाकों में बढ़ रहे पलायन पर चिंता जताते हुए सरकार कीकोशिशों को विधानसभा के सामने रखा। ऐसे में उम्मीद है कि कम से कम इस सरकार काकार्यकाल खत्म होने तक कुछ ऐसे कदम जरूर उठ जाएंगे तो पलायन को रोकने में सहायक होसकें, ताकि देवभूमि (उत्तराखंड) की सुंदरता और विकास दोनों ही बढ़ रहे और प्रदेशका बिगड़ा हुआ संतुलन वापस बन सके।