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उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच 15सालों से चला आ रह परिसंपत्तियों का मामला आज तक अनसुलझा है। इस मुद्दे को लेकरदोनों राज्यों के मुख्या कई बार एक टेबल पर बैठ चुके हैं, लेकिन वह औपचारिकताओं सेबाहर नहीं निकल पाए। यूपी के साथ सिंचाई, पेयजल और कई मामलों पर परिसंपत्तियोंका बंटवारा आज तक नहीं हो पाया। हालांकि सिंचाई विभाग की कुछ नहरें उत्तराखंड केहाथ आई हैं, लेकिनज्यादातर मामलों में बात नहीं बन पाई है। हरिद्वार की 3,321.495 हेक्टेयर भूमि, पौड़ी में पडऩे वाली ऋषिकेश मुनि कीरेती, कालागढ़समेत कई जगहें अब भी उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के कब्जे में है, जिनपर सियासीपेंच बरकरार है।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड केअपने-अपने प्रदेश संबंधी ड्राफ्ट पेश करने के बावजूद अब तक निस्तारण नहीं हो पायाहै। दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों का अब तक बंटवारा न हो पाने को सरकारीतंत्र की विफलता को दर्शाता है। वक्त-वक्त पर सियासी पार्टियों की तरफ से आवाजउठती रहती है कि अगर परिसंपत्तियों का विवाद जल्द नहीं सुलझ तो दूसरे राज्य केकब्जे वाली परिसंपत्तियों पर जबरन कब्जा किया जाएगा। लेकिन इस समस्या का समाधाननहीं होता। सरकारों की हीलाहवाली से उत्तराखंड की जनता को नुकसान हो रहा है।
उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीचपरिसंपत्तियों का बंटवारा दोनों प्रदेशों के लिए जी का जंजाल बन गया है। जब इसमामले को लेकर दोनों राज्यों के सियासतदान सवालों के घेरे में आते हैं तोपरिसंपत्तियों के बंटवारे पर जल्द कोई हल निकालने वादा देकर चले जाते हैं, लेकिनहकिकत तो यह है कि पिछले 15 सालों से संपत्तियों के बंटवारे का मामला ज्यों कात्यों लटका पड़ा है।