देहरादून। राज्य के निजी संस्थानों और काॅलेजों में पढ़ने वाले अनुसूचित जाति और जनजाति के छात्रों की मुश्किलें एक बार फिर से बढ़ सकती हैं। सरकार निजी शिक्षण एवं व्यावसायिक संस्थानों में तय की गई फीस की दरों के फैसले को पलटने की तैयारी कर रही है। बताया जा रहा है कि सरकारी दर की वजह से निजी संस्थानों को लाभ नहीं हो रहा है ऐसे में उन्होंने सरकार से साफ कह दिया है कि वे अगले सत्र से छात्रों को प्रवेश नहीं देंगे। अब इन संस्थानों के दवाब में सरकार शासनादेश में संशोधन करने पर विचार कर रही है।
गौरतलब है कि छात्रवृत्ति योजना में बड़े घोटाले के बाद समाज कल्याण विभाग की ओर से निजी संस्थानों और काॅलेजों में फीस की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए कई शासनादेश जारी किए गए थे। इसमें निजी शिक्षण एवं व्यावसायिक संस्थानों में प्रवेश लेने वाले अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्ग के छात्रों की फीस की सरकारी दर तय की गई थी। प्रवेश के वक्त छात्र-छात्रा सरकार की ओर से तय फीस ही संस्थान में जमा करते हैं और बाद में सरकार उसे छात्र-छात्राओं के खाते में वापस कर देती है।
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यहां बता दें कि इस शासनादेश से कई नामी निजी शिक्षण संस्थान सहमत नहीं हैं और उन्हें सरकारी दरों पर फीस घाटे का सौदा लग रही है। निजी शिक्षण संस्थान चाहते हैं कि सरकार शासनादेश में संशोधन करे और संस्थान को अपने हिसाब से शुल्क निर्धारण की अनुमति दी जाए। शासनादेश में संशोधन के लिए निजी शिक्षण संस्थानों के संगठन की ओर से शासन को प्रत्यावेदन दिया गया है। कुछ बड़े नेताओं की तरफ से भी निजी संस्थानों के समर्थन में आवाज उठाई जा रही है। ऐसे में सरकार अब इस मामले को गंभीरता से ले रही है।