नई दिल्ली । उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अपने राज्य में समान नागरिकता कानून यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किए जाने के संकेत दिए हैं । इसके साथ ही एक बार फिर से UCC को लेकर सियासत गर्माती नजर आ रही है । असल में अपने नाम के अनुरूप ही समान नागरिक कानून का मतलब है कि सबके लिए एक नियम । हालांकि भारत जैसे विविधता वाले देश में इसको लागू करना क्या इतना नजर नहीं आता , जहां सभी को अपने-अपने धर्मों के हिसाब से रहने की आजादी है । बावजूद इसके गोवा के बाद अब उत्तराखंड में इसे लागू किए जाने के संकेत खुद सीएम धामी ने दिए हैं । समान नागरिक कानून के मुताबिक पूरे देश के लिये एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक होंगे ।
क्या कहता है संविधान का अनुच्छेद 44
संविधान के अनुच्छेद 44 में भारत में रहने वाले सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून का प्रावधान लागू करने की बात कही गई है । अनुच्छेद-44 संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है । इस अनुच्छेद का उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में 'धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य' के सिद्धांत का पालन करना है ।
आजादी से पहले से हो रही चर्चा
विदित हो कि ऐसा नहीं है इस यूनिफॉर्म सिविल कोड की बातें हाल में भाजपा के केंद्र में आने के बाद से हो रही है । असल में कॉमन सिविल कोड यानी समान नागरिक कानून की बात आजादी के बाद की अवधारणा है। इतिहास में खंगालने पर इसका जिक्र 1835 में ब्रिटिश सरकार की एक रिपोर्ट में मिलता है , जिसमें कहा गया है कि अपराधों, सबूतों और कॉन्ट्रेक्ट जैसे मुद्दों पर समान कानून लागू करने की जरूरत है । इसके साथ ही इस रिपोर्ट में हिंदू-मुसलमानों के धार्मिक कानूनों से छेड़छाड़ की बात नहीं की गई है. लेकिन साल 1941 में हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव की समिति भी बनाई गई ।
समिति की सिफारिश पर हुए काम
हिंदू कानून पर संहिता बनाने के लिए बीएन राव की समिति की सिफारिश पर साल 1956 में हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के उत्तराधिकार मामलों को सुलझाने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम विधेयक को अपनाया गया , लेकिन इस मुस्लिम, इसाई और पारसी लोगों के लिये अलग-अलग व्यक्तिगत कानून थे । सभी के लिए एक समान कानून बनाने की मांग कई मामलों की सुनवाई के दौरान अदालतों में भी उठती रही है । इनमें 1985 का शाह बानो का ट्रिपल तलाक का मामला, 1995 का सरला मुद्गल का मामला है जो कि बहुविवाह से जुड़ा था ।
अब तक कोर्ट और सियासी दलों का रुख
साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में समान नागरिक कानून बनाने का वादा किया था ।
अगस्त 2019 में शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा था कि एनडीए में शिवसेना ने जो मुद्दे उठाए थे, उन्हें मोदी सरकार आगे बढ़ा रही है । इस पर ज्यादा बहस की जरूरत नहीं, यह देश हित का निर्णय है ।
अक्तूबर 2016 में असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि समान नागरिक संहिता केवल मुस्लिमों से जुड़ा मुद्दा नहीं है , बल्कि पूर्वोत्तर के कुछ इलाकों के लोग भी इसका विरोध करेंगे । भारत के बहुलतावाद और विविधता को बीजेपी खत्म कर देना चाहती है ।
वहीं साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश में अलग-अलग पर्सनल लॉ की वजह से उहापोह या भ्रम के हालात बने रहते हैं । सरकार अगर चाहे तो एक कानून बनकर ऐसी परिस्थितियां खत्म कर सकती है । क्या सरकार ऐसा करेगी? अगर आप ऐसा करना चाहते हैं तो आपको ये कर देना चाहिए?
साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में अब तक समान नागरिक कानून लागू करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है, जबकि संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 44 में नीति निदेशक तत्व के तहत उम्मीद जताई थी कि भविष्य में ऐसा किया जाएगा ।
साल 2021 में दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि देश में यूनिफार्म सिविल कोड लागू होना चाहिए. जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने एक केस की सुनवाई के दौरान कहा कि अब भारत धर्म, जाति, समुदाय से ऊपर उठ चुका है ।
आधुनिक हिंदुस्तान में धर्म-जाति की बाधाएं भी खत्म हो रही हैं । इस बदलाव की वजह से शादी और तलाक में दिक्कत भी आ रही है . आज की युवा पीढ़ी इन दिक्कतों से जूझे यह सही नहीं है । इसलिए देश में समान नागरिक कानून लागू होना चाहिए ।
भारत में इसकी स्थिति
भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872, नागरिक प्रक्रिया संहिता, संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882, भागीदारी अधिनियम, 1932, साक्ष्य अधिनियम, 1872 जैसे मामलो में सभी नागरिकों के लिए एक समान नियम लागू हैं. लेकिन धार्मिक मामलों में सबके लिए अलग-अलग कानून लागू हैं और इनमें बहुत विविधता भी है । देश में सिर्फ गोवा एक ऐसा राज्य जहां पर समान नागरिक कानून लागू है ।
समान नागरिक कानून लागू करने की चुनौतियां
'कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी'...ये लाइनें भारत के विविधता से भरे समाज को दर्शाती हैं । सिर्फ समाज ही नहीं, घर-घर में भी अलग-अलग रीति रिवाज हैं । भारत में हिंदुओं की आबादी सबसे ज्यादा है , लेकिन हर राज्य में अलग धार्मिक मान्यताएं और रिवाज हैं । उत्तर भारत के हिंदुओं के रीति-रिवाज दक्षिण भारत के हिंदुओं से बहुत अलग हैं । संविधान में नगालैंड, मेघालय और मिज़ोरम के स्थानीय रीति-रिवाजों को मान्यता और सुरक्षा की बात है ।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का अपना रुख
इसी तरह मुसलमानों के पर्सनल लॉ बोर्ड के भी समुदाय के लिए अलग-अलग नियम हैं. ईसाइयों के भी अपने अलग धार्मिक कानून हैं । इसके अलावा किसी समुदाय में पुरुषों को कई शादी करने की इजाज़त है । किसी जगह पर विवाहित महिलाओं को पिता की संपत्ति में हिस्सा न देने का नियम है । समान नागरिक कानून लागू होने के बाद ये सभी नियम खत्म हो जाएंगे ।