देहरादून। फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी पाने वाले शिक्षकों पर एसआईटी का शिकंजा कसना शुरू हो गया है। एसआईटी ने 2 शिक्षकों के खिलाफ मुकदमे की सिफारिश की है। बता दें कि राज्य के शिक्षा विभाग में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बड़ी संख्या में नौजवानों को नौकरी दी गई थी। बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा का खुलासा होने के बाद राज्य सरकार ने इसकी जांच एसआईटी से कराने का फैसला लिया था। एसआईटी ने जिन 2 शिक्षकों के खिलाफ मुकदमे की सिफारिश की है उनमें से एक करीब 22 सालों से नौकरी कर रहा था वहीं दूसरा करीब 13 सालों से कार्यरत था।
गौरतलब है कि एसआईटी ने मुकदमे के साथ ही विभागीय कार्रवाई की भी सिफारिश की है। बता दें कि एसआईटी शिक्षा विभाग के करीब 150 से ज्यादा शिक्षकों के प्रमाणपत्रों की जांच की जा रही है। फिलहाल एसआईटी ने जिन शिक्षकों के खिलाफ मुकदमे और विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की है उनमें प्राथमिक विद्यालय में सल्ट में 22 सालों से प्रधानाध्यापक के पद पर तैनात थे जबकि दूसरा 13 सालों को एक अन्य स्कूल में तैनात था।
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एसआईटी की जांच में इस बात का खुलासा हुआ कि प्राथमिक विद्यालय सल्ट में प्रधानाध्यापक के पद पर तैनात खवानी सिंह निवासी औरंगाबाद, बिजनौर के हाईस्कूल और इंटर के दस्तावेज फर्जी हैं। जांच में खवानी सिंह के हाईस्कूल के अंकपत्र का जो क्रमांक दिया गया, वह किसी सतीश चंद्र के नाम दर्ज हैं। इसके अलावा इंटरमीडिएट परीक्षा का रिकार्ड भी एसए इंटर कॉलेज फीना, बिजनौर और माध्यमिक शिक्षा परिषद में दर्ज नहीं है। एसआईटी प्रभारी श्वेता चौबे ने बताया कि आरोपी खवानी सिंह 24 मई 1996 से अल्मोड़ा जिले के सल्ट में तैनात हैं। फिलहाल खवानी सिंह 22 सालों से प्रधानाध्यापक के पद पर तैनात था। अब इसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जा सकेगी।
वहीं दूसरे मामले में रुद्रप्रयाग में तैनात एक अन्य शिक्षक विक्रम सिंह के दस्तावेज भी फर्जी पाए गए हैं और वह पिछले 13 सालों से फर्जी दस्तावेज के आधार पर नौकरी कर रहा था। बताया जा रहा है कि इस शिक्षक ने 2005 में नौकरी हासिल की थी जब एसआईटी ने बीएड की डिग्री की जांच कराई तो चौधरी चरण सिंह यूनीवर्सिटी ने प्रमाणपत्र जारी करने से इंकार कर दिया।