नई दिल्ली । दिल्ली नगर निगम चुनावों में भाजपा ने अपना तोड़ा है। यूं तो भाजपा ने निगम चुनावों में टिकटों को लेकर मची होड़ के बीच कहा था कि इस बार न तो किसी पार्षद को टिकट दिया जाएगा, न ही उनके किसी रिश्तेदार को। साथ ही यह कहा गया था कि इस बार नए चेहरों को निगम चुनावों में उतारा जाएगा। लेकिन टिकट वितरण के बाद सामने आए तत्थों से भाजपा की कथनी और करनी में अंतर नजर आया है। असल में पता चला है कि भाजपा ने ऐसे 24 उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं, जिनके रिश्तेदार किसी न किसी रूप में भाजपा के साथ जुड़े हुए हैं।
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बता दें कि निगम चुनावों में भी अपनी सत्ता कायम रखने के लिए भाजपा ने इस बार नई रणनीति पर काम करने का दावा किया था। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा था कि इस बार के निगम चुनावों में किसी भी पार्षद को टिकट नहीं दिया जाएगा। इतना ही नहीं उनके किसी रिश्तेदार को भी टिकट नहीं दिया जाएगा। उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा था कि इस बार सिर्फ पार्टी के नए और युवा चेहरों को ही निगम चुनावों में टिकट दिए जाएंगे। हालांकि गत सोमवार को अपनी दूसरी सूची भी जारी करने के बाद जब उम्मीदवारों के नाम सामने आए तो पार्टी के भीतर ही रोष फैल गया। पार्टी के कई नेताओं ने भाजपा पर अपना वादा तोड़ने का आरोप लगाया।
अब उम्मीदवारों की जांच में सामने आया है कि सही में भाजपा ने अपनी कथनी और करनी में फर्क किया। करीब 24 ऐसे उम्मीदवार हैं, जिनके रिश्तेदार भाजपा के सक्रिय सदस्य है। भाजपा ने मंगोलपुरी-बी से सांसद उदित राज के भतीजे विजय को पार्षद का टिकट दिया है। वहीं कुरैशीनगर से पार्षद हूर बानो इस्माइल की बच्चों को यहां से टिकट दिया है।
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इतना ही ओखला से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके नेता ब्रह्मसिंह की पत्नी कमलेश देवी को भी टिकट दिया गया है। उनके ससुर बीर सिंह मदनपुर खादर से पार्षद हैं। यह सिलसिला यही नहीं रुकता। वजीरपुर से भाजपा के मंडल उपाध्यक्ष हरीश शर्मा की रिश्तेदार पूनम शर्मा को टिकट दिया गया है। इतना ही नहीं पूनम के ससुर सेरेश भारद्वाज भी पार्षद हैं।
इसी तरह निगम चुनावों में टिकट पाने वाले उम्मीदवारों की एक लंबी फेरहिस्त है, जिनके रिश्तेदार भाजपा से जुड़े हुए हैं और अहम पदों पर आसीन हैं। इतना ही नहीं भाजपा ने निगम युवाओं में नए चेहरों को मौका दिए जाने की बात कही थी लेकिन इस बार चीर ऐसे उम्मीदवार उतारे गए हैं जिनकी आयु 60 साल से ज्यादा है।
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अपनी कथनी-करनी में फर्क के मीडिया में उजागर होने पर भाजपा के सुर भी बदल गए हैं। अब भाजपा का कहना है कि जिन उम्मीदवारों को उनकी पार्टी ने मैदान में उतारा है, असल में वह जीतने वाले उम्मीदवार है। वे पार्टी के कार्यकर्ता हैं और लंबे समय से पार्टी के लिए मेहनत कर रहे थे।
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