Monday, April 29, 2024

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जानिए कहां है एक ऐसा मंदिर जहां भगवान के साथ कुत्ते की भी होती है पूजा

अंग्वाल न्यूज डेस्क
जानिए कहां है एक ऐसा मंदिर जहां भगवान के साथ कुत्ते की भी होती है पूजा

हिन्दुस्तान विविधताओं से भरा देश है। यहां आपको हर जिले में पुरानी मान्यता से जुड़ी कोई ना कोई जानकारी जरूर मिल जाएगी। खासकर आस्था के नाम पर तो इस तरह की कई जानकारियां आपको मिल सकती हैं। अब छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले को ही देखें। यहां देवी-देवताओं के मंदिरों के अलावा एक मंदिर ऐसा भी है जहां कुत्ते की पूजा होता है और यह मंदिर यहां कुकुरदेव के मंदिर के नाम से मशहूर है। ऐसी मान्यता है कि यहां पूजा करने से लोगों को कुकुर खांसी और कुत्ते के काटने का कोई भय नहीं रहता है।

प्राचीन मंदिर का इतिहास

ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण फणी नागवंशी राजाओं ने 14वीं 15वीं शताब्दी में कराया था। मंदिर के गर्भगृह में एक कुत्ते की मूर्ति बनी हुई है। हालांकि साथ में उसके एक शिवलिंग भी बना हुआ है। कुकुरदेव का यह मंदिर करीब 200 मीटर के दायरे में फैला हुआ है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर भी दोनों ओर कुत्ते की प्रतिमा लगाई गई है। यहां लोग कुत्ते की पूजा भी वैसे ही करते हैं जैसे आम शिव मंदिरों में नंदी की पूजा करते हैं। इस मंदिर के गुबंद के चारों ओर नागों के चित्र बने हुए हैं। इसके साथ ही मंदिर के चारों तरफ उसी समय के शिलालेख भी हैं। हालांकि शिलालेख में कुछ स्पष्ट नहीं है। मंदिर में राम लक्ष्मण और शत्रुघ्न की प्रतिमा भी रखी गई है। इसके अलावा एक ही पत्थर से बनी दो फीट की गणेश प्रतिमा भी मंदिर में स्थापित है।


स्थानीय मान्यता

स्थानीय लोगों के अनुसार यहां कभी बंजारों की बस्ती थी। वहां मालीघोरी नाम का एक बंजारा रहता था। उसके पास एक पालतू कुत्ता था। अकाल पड़ने के कारण बंजारे को अपने प्रिय कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा। कुछ दिनों के बाद उस साहूकार के घर में चोरी हो गई। कुत्ते ने चोरों को सामान छुपाते हुए देख लिया। सुबह होते ही वह साहूकार को उस जगह पर ले गया। साहूकार को अपना सारा सामान मिल गया। कुत्ते की स्वामी भक्ति देखकर साहूकार ने एक कागज पर पूरा विवरण लिखकर उसे छोड़ दिया। कुत्ता वापस अपने मालिक के पास आ गया। बंजारे को लगा कि वह साहूकार के यहां से भागकर आ गया। उसने उसे पीट-पीटकर मार डाला। बाद में जब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो उसने मंदिर में ही उसकी समाधि बनवा दी। थोड़े दिनों बाद किसी ने मंदिर में उसकी मूर्ति भी बनवा दी। आज भी यह स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से विख्यात है। इस मंदिर में कुत्ते के काटे हुए लोग भी आते हैं। हालांकि यहां उसका इलाज नहीं होता है। लोगों का ऐसा मानना है कि यहां आने से उनकी बीमारी ठीक हो जाएगी।

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