नई दिल्ली। मोदी सरकार द्वारा साल 2016 में किए गए नोटबंदी के फैसले की विपक्ष ने जमकर आलोचना कर रही है जबकि सरकार ने इसे देशहित और काले धन पर लगाम लगाने वाला फैसला बता रही है। रिजर्व बैंक के द्वारा नोटबंदी के बाद करीब 99 फीसदी पैसा वापस आने का दावा करने के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि सरकार का मकसद पैसों को वापस बैंकों में जमा कराना मकसद नहीं था। अब केंद्र सरकार के ही कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट पीएम के फैसले की किरकरी करा रहा है।
गौरतलब है कि कृषि मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय से जुड़ी एक स्थाई संसदीय समिति की बैठक में माना कि नोटबंदी के फैसले का सबसे बुरा असर किसानों पर पड़ा है। कृषि मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि नोटबंदी की वजह से किसान समय पर बीज और खाद नहीं करा पाए जिससे उनकी फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गया। कृषि मंत्रालय की ओर से कहा गया कि जिस समय नोटबंदी का ऐलान किया गया उस समय किसान अपने खरीफ फसलों को बेच रहा था या फिर रबी की फसलों की बुआई कर रहा था।
ये भी पढ़ें - जम्मू-कश्मीर में एक बार फिर बन सकती है गठबंधन सरकार!, राजनीतिक सरगर्मियां तेज
यहां बता दें कि मंत्रालय ने कहा कि ऐसे समय में किसानों को नकदी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है लेकिन बाजार में नकदी संकट की वजह से किसान समय पर बीज और खाद नहीं खरीद पाए। कृषि मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि नकदी संकट की वजह से राष्ट्रीय बीज निगम के भी करीब 1 लाख 38 हजार क्विंटल गेहूं के बीज नहीं बिक पाए। हालांकि सरकार ने बीज खरीदने के लिए 500 और 1000 रुपये के पूराने नोट का इस्तेमाल करने की छूट दी थी लेकिन इसके बाद भी गेहूं के बीज की बिक्री में तेजी नहीं आई।
आपको बता दें कि कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के बाद श्रम मंत्रालय की रिपोर्ट ने सरकार को थोड़ी राहत दी। श्रम मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया कि नोटबंदी के बाद रोजगार के आंकड़ों में बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। बता दें कि इस समिति के अध्यक्ष कांग्रेस सांसद वीरप्पा मोईली हैं। समिति के सदस्यों में चेयरमैन सहित कुल 31 सांसद हैं। सदस्यों में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह भी शामिल हैं।