नई दिल्ली । सर्च इंजन गूगल ने अपने डूडल के रूप में एक शख्स का फोटो लगाया है। क्या आप जानते हैं यह शख्स कौन हैं। अगर नहीं तो चलिए हम बता देते हैं। ये हैं ऊर्दू के मशहूर लेखक और आलोचक अब्दुल कावी देसनावी। देश के बड़े शायरों में शुमार मुजफ्फर हनफी, जावेद अख्तर और इकबाल मसूद जैसे शायरों और लेखकों एक समय इनके शार्गिद रहे। मूल रूप से बिहार के देसना में 1930 में पैदा हुए देसनावी पढ़ाई के लिए मुंबई चले गए थे और उसके बाद उन्होंने अपना पूरा जीवन भोपाल में बीता। उनकी मौत के बाद बिहार के लोग अकसर ये बात कहते हैं कि भोपाल वालों ने देसनावी को उनसे छीन लिया। अब्दुल कावी क्योंकि बिहार के देसना के रहने वाले थे इसलिए उनके नाम के आगे अब्दुल कावी देसनावी जुड़ गया, जो उनकी पहचान बना रहा।
जानकारी के मुताबिक, अब्दुल कावी एक पढ़े-लिखे परिवार में पले-बढ़े। उनके पिता पिता डॉ. सईद रजा मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज में प्रिंसीपल थे। यही कारण था कि बिहार में पैदा होने के बाद उनकी पढ़ाई मुंबई में हुई। इनकी पढ़ाई भी सेंट जेवियर्स कॉलेज से हुई. उर्दू से जुड़ाव भी ग्लैमर की दुनिया वाले इसी शहर में रहने के दौरान हुआ।
हालांकि उनके चाचा सुलेमान भोपाल में रहते थे, ऐसे में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने अपना रुख मुंबई से भोपाल की ओर कर लिया। इसके बाद वह भोपाल के मशहूर सेफिया कॉलेज में उर्दू विषय के प्रोफेसर हो गए। भोपाल से उन्हें इस कदर प्यार हो गया था कि उन्होंने भोपाल पर रिसर्च कर डाली। उन्होंने अपने रिसर्च को दो किताबों की शक्ल दी। पहली किताब का नाम था 'अल्लामा इकबाल और भोपाल', दूसरी का नाम था 'गालिब भोपाल'।
अब्दुल कावी सिर्फ उर्दू भाषा के जानकार नहीं थे बल्कि उस समय के जाने-माने लेखक भी थे। उर्दू साहित्य में उनके योगदान के लिए उन्हें आज दुनियाभर में जाना जाता है। देसनावी ने कई प्रसिद्ध कृतियां लिखी हैं, लेकिन उसमे 'हयात-ए-अबुल कलाम आजाद' का उर्दू साहित्य में अलग ही स्थान है। ये किताब स्वतंत्रता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद के जीवन पर लिखी गई थी, जिसे साल 2000 में प्रकाशित किया गया था।