नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भी डीयू की एल.एल.बी छात्रा अंकिता मीणा की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें उसने खुद को गर्भवती होने के चलते अपनी क्लास में उपस्थिति कम होने का तर्क दिया था। डीयू ने उपस्थिति कम होने की सूरत में उसे परीक्षा देने से रोक दिया था, जिसके विरोध में उसने पहले दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। हाईकोर्ट ने उसके गर्भवति होने के चलते अनुपस्थित रहने पर अपनी सहानुभूति तो जताई लेकिन नियमों के अनुसार, उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी थी। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए अंकिता मीणा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल करते हुए उसे डीयू से एलएलबी की परीक्षा में बैठने की अनुमति दिलाने की मांग की थी।
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बता दें कि अंकिता ने डीयू के फैसले के खिलाफ पहले दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। उसकी याचिका पर हाईकोर्ट ने साफ कर दिया था कि गर्भावस्था के कारण क्लास से अनुपस्थित रहने का तर्क ठीक नहीं है। जस्टिस रेखा पल्ली ने अपने फैसले में कहा था कि एलएलबी चौथे सेमेस्टर की क्लासों से अनुपस्थित होने के लिए छात्रा के पास उचित कारण है, इसके बावजूद बार काउंसिल ऑफ इंडिया के कानूनी शिक्षा नियमों से संबंधित प्रावधानों और हाईकोर्ट के पूर्व के फैसलों को देखते हुए उसे राहत नहीं दी जा सकती। अदालत ने कहा कि इस सब के चलते लंबित याचिका सहित रिट याचिका खारिज की जाती है।
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इसके बाद अंकिता ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौत दी थी, जिसमें बुधवार को शीर्ष अदालत ने अंकिता की याचिका को खारिज कर दिया है।
बता दें कि डीयू की लॉ द्वितीय वर्ष की छात्रा अंकिता मीणा ने हाईकोर्ट में एक याचिका लगाते हुए कहा था कि वह गर्भवति है। ऐसे में वह क्लास में अपनी जरूरी 70 फीसदी उपस्थिति हासिल नहीं कर पाई। अब 16 मई से उसकी शुरू होने जा रही उसकी एलएलबी की चौथे सेमेस्टर की परीक्षा में हिस्सा लेने की मंजूरी के लिए कोर्ट दिल्ली विश्वविद्यालय को निर्देश दें।
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हालांकि विश्वविद्यालय के वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि एलएलबी डिग्री पाठ्यक्रम एक पेशेवर विषय है और उसमें नियमित उपस्थिति जरूरी है। अदालत ने वकील के दावे से सहमती जताई कि एलएलबी एक विशेष पेशेवर विषय है, जहां बार काउंसिल के नियमों के तहत ढील नहीं दी जा सकती है।