देहरादून। उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री का नाम तय हो चुका है। त्रिवेन्द सिंह रावत को आज मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई जाएगी लेकिन ऐसी भी खबरें आ रही हैं कि चुनाव के पहले सीएम पद की रेस में सबसे आगे चल रहा था। अब मुख्यमंत्री न बनाने से वे नाराज हो गए हैं। अब देखना है कि महाराज शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत करते हैं या नहीं। उनका मानना है कि पार्टी के अंदर का विरोध ही उनकी राह का रोड़ा बना।
नहीं मिली कमान
गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी ने सतपाल महाराज को चैबट्टियाखाल से वहां के तीन बार के विधायक की जगह टिकट दिया था। चुनाव जीतने के बाद वे फौरन दिल्ली भी पहुंच गए थे। हिन्दूवादी नेता की छवि और संघ से करीबी के चलते प्रदेश के मुख्यमंत्री के लिए उनका नाम सबसे आगे माना जा रहा था लेकिन पार्टी की विधायक दल ने त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नाम पर मुहर लगा दी। इससे अब सतपाल महाराज नाराज हो गए हैं। अब जबकि शपथ ग्रहण होने में कुछ ही समय बचा है तो ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि वे समारोह में शामिल होते हैं या नहीं।
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बागियों ने किया विरोध
ऐसा माना जा रहा है कि सतपाल महाराज का नाम पार्टी में उनके पुराने साथियों ने ही उनके नाम को आगे नहीं बढ़ने दिया। भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्रियों ने भी उन्हें पार्टी में नया बताकर उनका विरोध किया था। इसके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल होने वाले कांग्रेसियों ने तो उनके खिलाफ यह कहते हुए मोर्चा खोल दिया कि दूसरे विधायक सतपाल महाराज से ज्यादा मतों से विजयी हुए हैं तो उन्हें भी मौका मिलना चाहिए।
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साबित करने की चुनौती
पहले भाजपा उन्हें बदरीनाथ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाने के पक्ष में थी लेकिन महाराज ने चौबट्टाखाल की सुरक्षित सीट चुनीं। यहां से वे चुनाव तो जीत गए लेकिन यह भी विधायक दल और शीर्ष नेतृत्व को रिझा नहीं पाया। अब जो भी हो पूर्व दावेदारी के बावजूद मुख्यमंत्री के रेस में पिछडना इस बात को भी साबित करता है कि महाराज को अभी खुद को भाजपा में साबित करने की चुनौती है।
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