Friday, April 26, 2024

आखिर राहु-केतु कौन थे, जानिए आखिर क्यों इनकी दृष्टि रहती है जातक पर टेढ़ी

सुनीता गौड़
आखिर राहु-केतु कौन थे, जानिए आखिर क्यों इनकी दृष्टि रहती है जातक पर टेढ़ी

पौराणिक कथाओं में, किसी ब्रह्मण द्वारा जन्मपत्री बनाए जाने या उसकी विस्तृत जानकारी दिए जाने के दौरान अमूमन आपने राहु-केतु के बारे में सुना होगा। पर क्या आप जानते हैं ये कौन थे...? ये देव थे या दैत्य...आखिर क्यों इनका नाम आने पर लोग डर जाते हैं....अगर नही जानते तो चलिए मैं सुनाती हूं आपको वो पौराणिक कथा जिसमें इनके अस्तित्व में आने की कहानी है। ऐसा माना जाता है कि राहु-केतु शनि के अनुचर हैं और अगर सिर राहु है तो केतु उस शरीर का धड़ है।

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असल में श्रीमद् भागवत महापुराण में समुंद्र मंथन की गाथा का उल्लेख है। उसमें लिखा है कि अमृत के लिए देवताओं और दैत्यों के बीच एक संधि हुई और उसके मद्देनजर समुंद्र मंथन हुआ। इस दौरान नागराज वासुकि को रस्सी बनाकर मंदराचल पर्वत पर लपेटा गया। इंद्र के नेतृत्व में देवताओं ने नागराज की पूंछ पकड़ी और बलि के नेतृत्व में दैत्यों ने वासुकि को मुख की और से पकड़ा। इसके बाद पूरे जोश के साथ सुमंद्र को मंथने की प्रक्रिया शुरू हुई। एक-एक कर समुंद्र से कामधेनु, कल्पवृक्ष, कई प्रकार के रत्न निकले। सामान निकलता रहा और देव-दैत्यों में बंटता रहा। 


अंत में ध्नवंतरि हाथ में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए। अमृत को देखकर दैत्य व देवों के बीच आपाधापी मच गई। हर कोई अमृत को पाना चाहता था। स्थिति को भांपते हुए भगवान विष्णु ने मोहनी का रूप धरा और अमृत बांटने का बीड़ा उठाया। मोहनी रूप में भगवान नारायण को देखकर दैत्य मंत्रमुग्ध हो गए। इस दौरान भगवान विष्णु ने देव और दैत्य दोनों को अलग-अलग पक्तियों में बैठा दिया। इसके बाद उन्होंने देवों को अमृत पान कराना शुरू कर दिया। 

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अब शुरू होती है राहु-केतु के अस्तित्व की असल कहानी...दैत्यों की पक्ति में स्वर्भानु नाम का दैत्य भी बैठा हुआ था। उसे आभास हुआ कि मोहिनी रूप को दिखाकर दैत्यों को छला जा रहा है। ऐसे में वह देवताओं का रूप धारण कर चुपके से सूर्य और चंद्र देव के आकर बैठ गया जैसे ही उसे अमृत पान को मिला सूर्य और चंद्र देवता ने उसे पहचान लिया और मोहिनी रूप धारण किए भगवान विष्णु को अवगत कराया। इससे पहले ही स्वर्भानु अमृत को अपने कंठ से नीचे उतारता भगवान विष्णु ने अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। क्योंकि उसके मुख ने अमृत चख लिया था इसलिए उसका सिर अमर हो गया। 

कथा बताती है कि ब्रह्मा जी ने अमर हो चुके स्वर्भानु के सिर को एक सर्प के शरीर से जोड़ दिया यह शरीर ही राहु कहलाया और उसके धड़ को सर्प के सिर के जोड़ दिया जो केतु कहलाया। पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य और चंद्र देवता द्वारा स्वर्भानु की पोल खोले जाने के कारण राहु इन दोनों देवों का बैरी हो गए।  

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