सर्व मंगल मांगल्ये सिवे सर्वाथ साधिके ।शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणी नम्स्तुते । ।
नवरात्रों के छठे दिन मां कात्यायनी का पूजना किया जाता है। कात्यायन ऋृषि के यहां जन्म लेने कारण मां के इस स्वरूप को कात्यायनी कहा जाता है। मां भक्तों के सभी रोग-दोष दूर करती हैं। मां शत्रुहंता हैं इसलिए इनकी पूजा करने से शत्रु पराजित होते हैं और जीवन सुखमय बनता है। मां की पूजा करने से अविवाहित कन्याओं को क्षेष्ठ वर की प्राप्ति होती है। भगवान कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए बृज की गोपियों ने कालंदी यानि यमुना के तट पर कात्यायनी की पूजा की। इसलिए मां बृजमंडल की अधिष्ठात्री देवी भी हैं। मां की चार भुजाएं हैं, दाहिनी तरफ का ऊपरी हाथ अभय मुद्रा में तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। बायी और के ऊपरी हाथ में तलवार व नीचे हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।
---पूजन का विधान---मां का पूजन करने से पहले अपने देवस्थान को साफ कर लें। इसके बाद गंगाजल का छिड़काव कर स्थान को पवित्र करें और अपने हिसाब से सजा लें।-सर्वप्रथम गणेश पंचांग चौकी तैयार करें, जिसमें गौरी-गणेश, ओमकार (ब्रहमा-विष्णु-महेश) स्वास्तिक, सप्त घृतमात्रिका, योगनी, षोडस मात्रिका, वास्तु पुरुष, नवग्रह देवताओं समेत वरुण देवता को तैयार करें। -तदोपरांत सर्वतो भद्र मंडल (चावल से बनाया गया आसन, जिसपर आह्वान करके हमारे सभी देवी-देवताओं को विराजमान किया जाता है। ) को तैयार करें। -इसके बाद एक सकोरे में मिट्टी भरकर उसमें जौ को बोएं और देव स्थान पर रख दें। -मंदिर को चुनरी और फूल मालाओं से सजाएं। माता की मूर्ति पर रोली का टिका लगाएं। चावल लगाएं। साथ ही देवस्थान पर अपनी श्रद्धानुसार फल-फूल-मिष्ठान तांबुल दक्षिणा इत्यादि समर्पित करें।-इसके बाद अपने अनुसार या ब्राह्मणों के द्वारा पाठ करें/कराएं।