Saturday, April 27, 2024

जानिए क्यों खास है उत्पन्ना एकादशी , धर्म एवं मोक्ष फलों की प्राप्ति के लिए रखें यह व्रत

अंग्वाल न्यूज डेस्क
जानिए क्यों खास है उत्पन्ना एकादशी , धर्म एवं मोक्ष फलों की प्राप्ति के लिए रखें यह व्रत

आचार्य नीरज रतूडी

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष के दिन उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 22 नवम्बर को है । यह व्रत पूर्ण नियम, श्रद्धा व विश्वास के साथ रखा जाता है, इसे व्रत के प्रभावस्वरूप धर्म एवं मोक्ष फलों की प्राप्ति होती है । मान्यता है कि इस व्रत के फलस्वरुप मिलने वाले फल अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थों में स्नान-दान आदि से मिलने वाले फलों से भी अधिक होते है..!  यह उपवास, उपवासक का मन निर्मल करता है,शरीर को स्वस्थ करता है, हृदय शुद्ध करता है तथा भक्त को सदमार्ग की ओर प्रेरित करता है । व्रत का पुण्य जीव का उद्धार करता है । एकादशी के व्रतों में उत्पन्ना एकादशी व्रत को मुख्य स्थान प्राप्त है । इस दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करने का विधान है । इस दिन ब्रह्रा मुहूर्त समय में भगवान का पुष्प, धूप, दीप, अक्षत से पूजन करना चाहिए. इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगाया जाता है ।

उपवास में तामसिक वस्तुओं का सेवन करना निषेध माना जाता है ।  वस्तुओं में मांस, मदिरा, प्याज व मसूर दाल है । ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए व्रत का संकल्प करना चाहिए । प्रात:काल समस्त दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करने के पश्चात सूर्य देव को जलअर्पण करके भगवान विष्णु जी का ध्यान करना चाहिए। इसके पश्चात धूप, दीप, नैवेद्ध से भगवान का पूजन करना चाहिए।

रात्री समय दीपदान करना चाहिए यह सत्कर्म भक्ति पूर्वक करने चाहिए । उस रात को नींद का त्याग करना चाहिए और रात्रि में भजन सत्संग आदि शुभ कर्म करने चाहिए । इस दिन श्रद्वापूर्वक ब्राह्माणों को दक्षिणा देनी चाहिए और प्रभु से अपनी गलतियों की क्षमा मांगनी चाहिए और अगर संभव हों, तो इस मास के दोनों पक्षों की एकादशी के व्रतों को करना चाहिए।

  उत्पन्ना एकादशी मुहूर्त

 22 नवंबर शुक्रवार को सुबह 09 बजकर 02 मिनट से एकादशी तिथि की प्रारम्भ हो जाएगी। 

23 नवंबर शनिवार को सुबह 06 बजकर 24 मिनट पर एकादशी तिथि का समापन हो जाएगा

जानिए क्या है उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा

दंत कथाओं के अनुसार , सतयुग में एक महा भयंकर दैत्य मुर हुआ करता था । दैत्य  मुर ने इन्द्र आदि देवताओं पर विजय प्राप्त कर उन्हें, उनके स्थान से भगा दिया । तब इन्द्र तथा अन्य देवता क्षीर सागर भगवान श्री विष्णु के पास जाते हैं। देवताओं सहित सभी ने श्री विष्णु जी से दैत्य के अत्याचारों से मुक्त होने के लिये विनती की. इन्द्र देव के वचन सुनकर भगवान श्री विष्णु बोले -देवताओं मै तुम्हारे शत्रुओं का शीघ्र ही संकार करूंगा । जब दैत्यों ने भगवान श्री विष्णु जी को युद्ध भूमि में देखा तो उन पर अस्त्रों-शस्त्रों का प्रहार करने लगे । भगवान श्री विष्णु मुर को मारने के लिये जिन-जिन शास्त्रों का प्रयोग करते वे सभी उसके तेज से नष्ट होकर उस पर पुष्पों के समान गिरने लगे़ भगवान श्री विष्णु उस दैत्य के साथ सहस्त्र वर्षों तक युद्ध करते रहे़ परन्तु उस दैत्य को न जीत सके । अंत में विष्णु जी शान्त होकर विश्राम करने की इच्छा से बद्रियाकाश्रम में एक लम्बी गुफा में वे शयन करने के लिये चले गए।

दैत्य भी उस गुफा में चला गया, कि आज मैं श्री विष्णु को मार कर अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लूंगा । उस समय गुफा में एक अत्यन्त सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई़ और दैत्य के सामने आकर युद्ध करने लगी।  दोनों में देर तक युद्ध हुआ, उस कन्या ने उसको धक्का मारकर मूर्छित कर दिया और उठने पर उस दैत्य का सिर काट दिया और वह दैत्य मृत्यु को प्राप्त हुआ ।


उसी समय श्री विष्णु जी की निद्रा टूटी तो उस दैत्य को किसने मारा वे ऎसा विचार करने लगे । इस पर उक्त कन्या ने उन्हें कहा कि दैत्य आपको मारने के लिए तैयार था । तब मैने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इसका वध किया है । भगवान श्री विष्णु ने उस कन्या का नाम एकादशी रखा क्योकि वह एकादशी के दिन श्री विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थी इसलिए इस दिन को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है । 

उत्पन्ना एकादशी विशेष

अन्य एकादशी व्रत की तरह उत्पन्ना एकादशी व्रत का पूजा विधान भी एक समान है, जो कि इस प्रकार है

   1.एकादशी व्रत रखने वाले व्यक्ति को एक दिन पूर्व यानि दशमी की रात्रि में भोजन नहीं करना चाहिए.!

   2.एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए,इसके बाद भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए और उन्हें पुष्प, जल, धूप, दीप, अक्षत अर्पित करना चाहिए.!

  3.इस दिन केवल फलों का ही भोग लगाना चाहिए और समय-समय पर भगवान विष्णु का सुमिरन करना चाहिए,रात्रि में पूजन के बाद जागरण करना चाहिए..!

   4.अगले दिन द्वादशी को पारण करना चाहिए,किसी जरुरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन व दान-दक्षिणा देना चाहिए,इसके बाद स्वयं को भोजन ग्रहण करके व्रत खोलना चाहिए । 

प्रस्तुति - आचार्य नीरज रतूडी

शिक्षा शास्त्री , M A B.Ed , फोन - 91-9891211564 , 91-9756994565

(ज्योतिष,अंकज्योतिष,हस्तरेखा,वास्तु एवं याज्ञिक कर्म हेतु सम्पर्क करें।)

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