नई दिल्ली। देश में गोपालकों के अच्छे दिन आने वाले हैं। स्वच्छता अभियान के तहत भारतीय रेलवे में बायो टाॅयलेट लगाए जा रहे हैं और इसमें घोल के रूप में गाय के गोबर का इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां बता दें कि डीआरडीई इस घोल को तैयार कर भारतीय रेलवे को देते हैं। बायो टाॅयलेट में इनोकुलूम नाम के घोल का इस्तेमाल किया जाता है जो टाॅयेलट में जाने वाले मल-मूत्र को अलग कर देता है।
गौरतलब है कि भारत में स्वच्छता अभियान काफी जोर-शोर से चलाया जा रहा है। भारतीय ट्रेनों के शौचालयों में बढ़ती गंदगी को देखते हुए अब उसमें बायोटाॅयलेट बनाए जा रहे हैं। सरकार की योजना है कि दिसंबर 2018 तक सभी ट्रेनों में बायोटाॅयलेट लगा दिए जाएंगे। इस बायो टॉयलेट टैंक में गाय के गोबर के इस्तेमाल से बनाया गया घोल डाला जा रहा है, जिसे रेलवे अभी डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट इस्टेबलिशमेंट (डीआरडीई) ग्वालियर से 19 रुपये प्रति लीटर की दर से खरीद रहा है। इस योजना के लिए रेलवे को 3,350 ट्रक गोबर की जरूरत पड़ेगी जिसकी कीमत 42 करोड़ बताई जा रही है।
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इस काम के लिए चाहिए होता है गोबर
बायो टॉयलेट में इनोकुलुम नाम का घोल इस्तेमाल किया जाता है। डीआरडीई इसे तैयार कर रेलवे को देता है। घोल को तैयार करने के लिए उसमें गाय का गोबर मिलाया जाता है। गोबर के कारण घोल में बैक्टीरिया जीवित रहते हैं साथ ही और बैक्टीरिया पैदा होते रहते हैं। 400 लीटर के टैंक में 120 लीटर घोल डाला जाता है। घोल से टैंक में जमा मल-मूत्र अलग हो जाता है। मल कार्बन डाइआक्साइड में तब्दील होकर हवा में उड़ जाता है और पानी को रिसाइकिल कर ट्रेनों की धुलाई की जाती है।
गोबर के लिए खुलेंगे सेंटर
बताया जा रहा है कि ग्वालियर स्थित डीआरडीई अभी तक 15 अधिकृत वेंडरों से गाय का गोबर लेता है। यह गोबर, वेंडर गोशाला और जिनके पास ज्यादा गाय है, उनसे खरीदा जाता है। चूंकि साल के अंत तक सभी ट्रेनों में बायो टॉयलेट लगेंगे, ऐसे में डीआरडीई को बड़े पैमाने पर गोबर की जरूरत पड़ेगी। इसके चलते गोबर इकट्ठा करने के लिए कई और सेंटर भी खोलने की योजना है। इसके अलावा टैंक में डाले जाने वाले घोल के लिए भी सेंटर खोला जाएगा।